वंदना
धर्म के क्षेत्र में वंदना का जितना मूल्य या महत्त्व है, व्यवहार के क्षेत्र में भी उसका उतना ही महत्त्व और मूल्य है। यह शिष्टाचार है। हमें वंदना करनी चाहिए। सद्गुरु की वंदना श्रद्धाभक्ति द्वारा करने से विनय की वृद्धि होती है। इसका मुख्य उद्देश्य भी आत्मशुद्धि है। हमें प्रत्याख्यान भी करना चाहिए। प्रमाद पूर्वक किये भूत कालीन दोषों का प्रत्याख्यान । प्रत्याख्यान हेतु पूर्वक नियत करने के अर्थ से यह प्रयुक्त है। साधू साध्वियों की वंदना करते हैं, उससे अहं का विसर्जन होता है। आवश्यक छह अध्ययन है उनमें से एक वंदना है।
गौतम ने महावीर से पूछा - भंते! वंदना से जीव को क्या लाभ होता है?
भगवान ने कहा - गौतम! वंदना से जीव नीच गोत्र कर्म को क्षीण करता है। उच्च गोत्र कर्म का बंध बांधता है।