व्यवहार सम्यक्त्व के 67 बोल स्थानक-6

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व्यवहार सम्यक्त्व के 67 बोल

1) श्रद्धान-4, (2) लिंग-3, (3) विनय-10, (4) शुद्धि-3, (5) लक्षण-5, (6) दूषण-5, (7) भूषण-5, (8) प्रभावना-8, (9) आगार-6, (10) यतना-6, (11) भावना-6, (12) स्थानक-6.


स्थानक-6

धर्म की उत्पत्ति व धर्म में स्थिर होने में सहायक होने वाले स्थान को 'स्थानक' कहते हैं।

1.जीव चेतना लक्षण युक्त है।
2.जीव शाश्वत अर्थात् उत्पत्ति और विनाश रहित है।
3.जीव शुभाशुभ कर्मों का कर्ता है।
4.जीव किये हुए कर्मों (सुख-दुःख) का स्वयं भोक्ता है।
5.भव्य जीव कर्मों को क्षय करके मोक्ष में जाता है।
6.सम्यग् ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप मोक्ष के उपाय हैं।

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