देवता के 198 भेद
दस भवनपति, पन्द्रह परमाधामी ( परमाधार्मिक), सोलह वाणव्यंतर, दस त्रिजृम्भक, दस ज्योतिषी, तीन किल्विषी, बारह देवलोक, नव लोकांतिक, नव ग्रैवेयक और पाँच अनुत्तर विमान - ये देवता के 99 भेद हैं,
इनके नाम इस प्रकार हैं-
दस भवनपति - असुरकुमार, नागकुमार, सुपर्णकुमार, विद्युत्कुमार, अग्निकुमार, द्वीपकुमार, उदधिकुमार, दिशाकुमार, पवनकुमार, स्तनितकुमार ।
पन्द्रह परमाथामी - अम्ब, अम्बरीष, श्याम, शबल, रौद्र, महारौद्र, काल, महाकाल, असिपत्र, धनु, कुम्भ, वालुय, वैतरणी, खरस्वर, महाघोष |
सोलह वाणव्यन्तर - पिशाच, भूत, यक्ष, राक्षस, किन्नर, किम्पुरुष, महोरग, गंधर्व, आणपत्रे, पाणपत्रे, इसिवाई, भूयवाई, कन्दे, महाकन्दे, कुहण्डे और पयंगदेवे ।
दस त्रिजृम्भक - अन्न जृम्भक, पान जृम्भक, लयन जृम्भक, शयन जृम्भक, वस्त्र जृम्भक, फल जृम्भक, पुष्प जृम्भक, फल-पुष्प जृम्भक, विद्या जृम्भक और अग्नि जृम्भक |
दस ज्योतिषी - चंद्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और तारा, ये पाँच ज्योतिषी हैं। ये पाँच चर और पाँच अचर (स्थिर ) - इस प्रकार ज्योतिषी के दस भेद होते हैं। चर ज्योतिषी ढाई द्वीप के अन्दर हैं। और पूर्ण ज्योति तथा कांति वाले हैं। अचर ज्योतिषी ढाई द्वीप के बाहर है, जिनकी ज्योति और कांति चर की अपेक्षा आधी है।
तीन किल्विषी - तीन पलिया (तीन पल्योपम की स्थिति वाले), तीन सागरिया ( तीन सागरोपम की स्थिति वाले) और तेरह सागरिया (तेरह सागरोपम की स्थिति वाले), तीन पलिया किल्विषी देव पहले दूसरे देवलोक के नीचे रहते हैं। तीन सागरिया किल्विषी देव, तीसरे चौथे देवलोक के नीचे रहते हैं। तेरह सागरिया किल्विषी देव पाँचवे देवलोक के ऊपर और छठे देवलोक के नीचे रहते हैं।
बारह देवलोक - सौधर्म, ईशान, सनत्कुमार, महेंद्र, ब्रह्म, लांतक, महाशुक्र, सहस्रार , आनत, प्राणत, आरण और अच्युत देवलोक।
नव लोकांतिक - सारस्वत, आदित्य, वहूिन, वरूण, गर्दतोय, तुषित, अव्याबाध, आग्नेय और अरिष्ट।
नव ग्रैवेयक - भद्र, सुभद्र, सुजात, सुमनस, सुदर्शन, प्रियदर्शन, आमोह, सुप्रतिबद्ध और यशोधर।
पाँच अनुत्तर विमान - विजय, वैजयंत, जयंत, अपराजित और सर्वार्थ सिद्ध।
देवता के उपर्युक्त 99 भेद हुए | ये 99 पर्याप्त और 99 अपर्याप्त, इस प्रकार देवता के कुल 198 भेद हुए।