पृथ्वीकाय के दो भेद
- सूक्ष्म और बादर, इन दोनों के दो-दो भेद - पर्याप्त और अपर्याप्त। इस तरह पृथ्वीकाय के चार भेद हुए।
बादर पृथ्वीकाय के मुरड़, मिट्टी, खड़िया मिट्टी (हिंगलू), हरताल, हड़मची, भोडल, गेरू, सोना, चाँदी, लोहा, ताँबा, मणि, रत्न आदि अनेक भेद हैं। पृथ्वीकाय का वर्ण पीला, स्वभाव कठोर, संठाण मसूर की दाल के आकार के समान है। एक छोटे से कंकर में असंख्याता पृथ्वीकाय के जीव होते हैं। एक पर्याप्त के नेश्राय में असंख्याता अपर्याप्त उत्पन्न होते हैं।
'सूक्ष्म' नाम कर्म के उदय से पृथ्वीकाय के जिन जीवों का शरीर अत्यन्त सूक्ष्म हों, वे सूक्ष्म पृथ्वीकाय कहलाते हैं। असंख्यात सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीवों के शरीर इकट्ठे हो जाने पर भी ये छद्मस्थ को दिखाई नहीं देते। परमावधिज्ञानी और केवल ज्ञानी ही इन जीवों को देख सकते हैं। इन सूक्ष्म पृथ्वीकाय के जीवों का छेदन - भेदन नहीं होता। अग्नि इन्हें जला नहीं सकती । इन जीवों को किसी से उपघात नहीं होता और न ये किसी जीव को उपघात पहुँचाते हैं। सारे लोकाकाश में ये जीव काजल की कुप्पी समान ठूस-ठूस कर भरे हुए हैं। इसी तरह सूक्ष्म अप्काय, सूक्ष्म तेउकाय, सूक्ष्म वायुकाय और सूक्ष्म वनस्पतिकाय का स्वरूप जानना ।
'बादर' नाम कर्म के उदय से पृथ्वीकाय के जिन जीवों को स्थूल शरीर प्राप्त होता है, वे बादर पृथ्वीकाय कहलाते हैं। असंख्य पृथ्वीकायिक जीवों के शरीर इकट्ठे होने पर ये दिखाई देते हैं । इनका छेदन - भेदन आदि होता है । ये लोक के एक देश में रहे हुए हैं। इसी तरह बादर अप्काय, बादर तेउकाय, बादर वायुकाय और बादर वनस्पतिकाय का स्वरूप जानना । बादर वायुकाय के असंख्य जीवों के शरीर इकट्ठे होने पर उनका स्पर्श द्वारा ज्ञान होता है । वनस्पतिकाय के एक तथा अनेक जीवों का शरीर दिखाई देता है।
अप्कायअप्काय के दो भेद - सूक्ष्म और बादर । पर्याप्त अपर्याप्त के भेद से दोनों के दो-दो भेद होते हैं। इस तरह अप्काय के चार भेद हुए ।
बादर अप्काय के ओस,, कुहरा, बर्फ, ओला, वर्षा का पानी, कुवा, बावड़ी, तालाब का पानी आदि अनेक भेद हैं। अप्काय का वर्ण लाल, स्वभाव ढीला और संठाण पानी के बुलबुले (बुद - बुद) के आकार के समान है । एक पानी की बूँद में असंख्याता जीव होते हैं। एक पर्याप्त की नेश्राय में असंख्याता अपर्याप्त उत्पन्न होते हैं।
तेऊकायतेऊकाय के दो भेद- सूक्ष्म और बादर। दोनों के पर्याप्त अपर्याप्त के भेद से दो-दो भेद होते हैं। इस तरह तेऊकाय के चार भेद हुए ।
बादर तेऊकाय के इंगाल (अंगारा), ज्वाला, भोभर, उल्कापात, विद्युत्, वड़वाग्नि, काष्ट की अग्नि, पाषाण की अग्नि आदि अनेक भेद हैं। तेऊकाय का वर्ण सफेद, स्वभाव उष्ण और संठाण सूई की भारी के आकार के समान है । एक चिनगारी में तेऊकाय के असंख्याता जीव होते हैं। एक पर्याप्त की नेश्राय में असंख्याता अपर्याप्त उत्पन्न होते हैं।
वायुकायवायुकाय के दो भेद - सूक्ष्म और बादर । दोनों के पर्याप्त अपर्याप्त के भेद से दो-दो भेद होते हैं। इस तरह वायुकाय के चार भेद होते हैं।
बादर वायुकाय के उक्कलियावाय, मण्डलियावाय, घनवाय, गुंजावाय, संवर्तक वाय, शुद्धवाय आदि अनेक भेद हैं। वायुकाय का वर्ण नीला है, स्वभाव चलना है और संठाण पताका के आकार के समान है। एक फूँक प्रमाण सचित्त वायु में वायुकाय के असंख्याता जीव होते हैं। एक पर्याप्त की नेश्राय में असंख्याता अपर्याप्त उत्पन्न होते हैं। लोकाकाश के छिद्रों में, यानी जहाँ भी लोकाकाश खाली है, वहाँ वायुकाय के जीव रहते हैं ।
वनस्पतिकायवनस्पतिकाय के छह भेद - मुख्य भेद २- सूक्ष्म और बादर । बादर वनस्पतिकाय के दो भेद - प्रत्येक और साधारण । इन तीनों सूक्ष्म, प्रत्येक और साधारण के पर्याप्त अपर्याप्त के दो-दो भेद होते हैं। इस प्रकार वनस्पतिकाय के छः भेद हुए ।
प्रत्येक वनस्पति के बारह भेद - रूक्खा (वृक्ष), गुच्छा, गुम्मा (गुल्म), लया, वल्ली, पव्वगा, तणा, वलया, हरिय (हरित), ओसहि (औषधि), जलरूहा, कुहणा ।
साधारण वनस्पति- जिन जीवों के साधारण शरीर होता है, यानी एक औदारिक शरीर में अनन्त जीव रहते हैं, उसे साधारण वनस्पति कहते हैं । साधारण वनस्पति के अनेक प्रकार हैं जैसे - प्याज, लहसुन, आलू, रतालू, पिंडालू, गाजर, मूला, शलगम, हल्दी, अदरख आदि। वनस्पतिकाय का वर्ण काला होता है । स्वभाव और संठाण नाना प्रकार के होते हैं।