तिर्यंच पंचेन्द्रिय के बीस भेद
जलचर, स्थलचर, खेचर, उरपरिसर्प, भुजपरिसर्प। इनके स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और (श्रोत्र) कान - ये पाँचों इन्द्रियाँ होती हैं।
जलचर - पानी में चलने वाले जलचर कहलाते हैं। जलचर के पाँच भेद हैं- मच्छ, कच्छप, ग्राह, मगर और सुंसुमार। इन पाँचों भेदों में सभी जलचर तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीवों का समावेश हो जाता है।
स्थलचर - जमीन पर चलने वाले स्थलचर कहलाते हैं। स्थलचर के चार भेद हैं- एगखुरा, बिखुरा, गंडीपया, सण्णपया (सनखपद)। एगखुरा- एक खुर वाले, जैसे- घोड़ा, गधा आदि। बिखुरा - दो खुर वाले, जैसे- गाय, भैंस, बकरी, ऊँट आदि। गंडीपया- सुनार की एरण के समान गोल पैर वाले, जैसे- हाथी, गैंडा आदि। सण्णपया - नख सहित पंजे वाले, जैसे- सिंह, चीता, बिल्ली, कुत्ता आदि।
खेचर- आकाश में उड़ने वाले पक्षी। इनके चार भेद- चर्मपक्षी, रोमपक्षी, समुग्ग पक्षी, वितत पक्षी। चर्म पक्षी- चर्म के पंख वाले। जैसे- चिमगादड़, भारंड पक्षी, समुद्र-वायस आदि। रोमपक्षी - रूँओं के पंखवाले। जैसे- चिड़ियाँ, कबूतर, मोर, तोता, मैना, हंस, कौवा आदि। समुग्ग पक्षी - जिनके पंख हमेशा डिब्बे की तरह बंद रहते हैं। वितत पक्षी - जिनके पंख हमेशा खुले-फैले हुए रहते हैं। समुग्ग पक्षी और वितत पक्षी ढ़ाई द्वीप में नहीं होते। ये ढ़ाई द्वीप के बाहर होते हैं।
उरपरिसर्प - छाती से चलने वाली सर्प जाति। उरपरिसर्प चार प्रकार के होते हैं- अहि, अजगर, असालिया, महोरग। अहि सर्प के दो भेद - फण करने वाले और फण नहीं करने वाले। अजगर - जो मनुष्य आदि को निगल जाता है। असालिया - यह चक्रवर्ती आदि की राजधानी अथवा नगर आदि की खाल (गटर) के नीचे पैदा होता है। अन्तर्मुहूर्त में बारह योजन लम्बा हो जाता है। इसे भस्म दाह होता है। यह बारह योजन की मिट्टी खा जाता है। चक्रवर्ती आदि की सेना तथा गाँव नगर आदि का नाश कर देता है। यह असंज्ञी होता है। इसकी आयु अन्तर्मुहूर्त की होती है। महोरग - महोरग जाति का सर्प ढ़ाई द्वीप के बाहर होता है। यह अंगुल- प्रत्येक अंगुल से लेकर एक हजार योजन प्रमाण होता है। यह सर्प जल और स्थल दोनों जगह रहता है।
भुजपरिसर्प - भुजा से चलने वाले। जैसे- कोल, नेवला, चूहा, छिपकली, गिलहरी, गोह। आदि।
तिर्यंच पंचेन्द्रिय के पाँच भेद- जलचर, स्थलचर, खेचर, उरपरिसर्प और भुजपरिसर्प, इनके सन्नी और असन्नी के भेद से दस भेद होते हैं। इन दस के पर्याप्त अपर्याप्त के भेद से बीस भेद होते हैं।