भगवान महावीर के चातुर्मास

भगवान महावीर के चातुर्मास

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भगवान महावीर के चातुर्मास

श्रमण भगवान महावीर ने पहला चातुर्मास अस्थिग्राम में किया। चम्पा और पृष्ठचम्पा में तीन चातुर्मास किए। वैशाली और वाणिज्य ग्राम में बारह, राजगृह और नालंदा में चौदह, मिथिला नगरी में छ:, भद्रिका (भद्दिल) में दो, आलंभिका और श्रावस्ती में एक-एक, अनार्य वज्रभूमि में तीन और पावापुरी में एकमात्र अंतिम चातुर्मास । इस प्रकार भगवान ने कुल मिलाकर बयालीस चातुर्मास किए।

प्रभु के दीक्षा लेने के पश्चात् तेरहवें वर्ष के मध्य में वैशाख शुक्ला दशमी को दिन के पिछले प्रहर में जृंभिका ग्राम के बाहर, ऋजुबालुका नदी के किनारे, जीर्णउद्यान में शालवृक्ष के नीचे प्रभु आतापना ले रहे थे। उस समय छट्टभक्त की निर्जल तपस्या से उन्होंने क्षपकश्रेणी का आरोहण कर, शुक्लध्यान के द्वितीय चरण में मोहनीय, ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय नामक चार घातिकर्मों का क्षय किया और उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के योग में केवलज्ञान एवं केवलदर्शन की उपलब्धि की। भगवान भाव अर्हन्त कहलाए तथा सर्वज्ञ और सर्वदर्शी बन गए।

श्रमण भगवान महावीर ने पहला चातुर्मास अस्थिग्राम में किया। चम्पा और पृष्ठचम्पा में तीन चातुर्मास किए। वैशाली और वाणिज्य ग्राम में बारह, राजगृह और नालंदा में चौदह, मिथिला नगरी में छ:, भद्रिका (भद्दिल) में दो, आलंभिका और श्रावस्ती में एक-एक, अनार्य वज्रभूमि में तीन और पावापुरी में एकमात्र अंतिम चातुर्मास । इस प्रकार भगवान ने कुल मिलाकर बयालीस चातुर्मास किए।


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