गणधर
श्रमण भगवान महावीर के धर्म-परिवार में नौ गण और ग्यारह गणधर थे जो इस प्रकार हैं
[1] इन्द्रभूति, [2] अग्निभूति, [3] वायुभूति, [4] व्यक्त, [5] सुधर्मा, [6] मंडित, [7] मौर्यपुत्र, [8] अकम्पित, [9] अचलभ्राता, [10] मेतार्य और [11] श्री प्रभास।
ये सभी गृहस्थ जीवन में विभिन्न क्षेत्रों के निवासी जातिमान् ब्राह्मण थे। मध्यम पावा के सोमिल ब्राह्मण का आमन्त्रण पाकर अपने-अपने छात्रों के साथ ये वहाँ के यज्ञ में आये हुए थे। केवलज्ञान प्राप्त हो जाने पर भगवान भी पावापुरी पधारे और यज्ञस्थान के उत्तरभाग में विराजमान हुए। इन्द्रभूति आदि विद्वान् भी समवशरण की महिमा से आकर्षित हो भगवान की सेवा में आये और अपनी-अपनी शंकाओं का समाधान पाकर वैशाख शुक्ला एकादशी के दिन अपने शिष्य मंडल के साथ भगवान महावीर के चरणों में दीक्षित हुए। त्रिपदी का ज्ञान प्राप्त कर इन्होंने चतुर्दश पूर्व की रचना की और गणधर कहलाये।
उनका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है
1. इन्द्रभूति
प्रथम गणधर इन्द्रभूति मगध देश के अन्तर्गत गोबर' ग्रामवासी गौतम गोत्रीय वसभूति ब्राह्मण के पुत्र थे। इनकी माता का नाम पृथ्वी था। ये वेद-वेदान्त के पाठी थे। महावीर स्वामी के पास आत्मा विषयक संशय की निवृत्ति पाकर ये पाँच सौ छात्रों के साथ दीक्षित हुए।
दीक्षा के समय इनकी अवस्था 50 वर्ष की थी। इनका शरीर सुन्दर सुडौल और सुगठित था। महावीर के चौदह हजार साधुओं में मुख्य होकर भी आप बड़े तपस्वी थे। आपका विनय गुण भी अनुपम था। भगवान के निर्वाण के बाद आपने केवलज्ञान प्राप्त किया। तीस वर्ष तक छद्मस्थ-भाव रहने के पश्चात् फिर बारह वर्ष केवली-पर्याय में विचरे। आयुकाल निकट देखकर अन्त में आपने गुणशील चैत्य में एक मास के अनशन से निर्वाण प्राप्त किया। इनकी पूर्ण आयु बाणवें वर्ष की थी।
2. अग्निभूति
दूसरे गणधर अग्निभूति इन्द्रभूति के मझले सहोदर थे। 'पुरुषाद्वैत' की शंका दूर होने पर इन्होंने भी पाँच सौ छात्रों के साथ 46 वर्ष की अवस्था में श्रमण भगवान महावीर की सेवा में मुनि-धर्म स्वीकार किया और बारह वर्ष तक छद्मस्थ भाव में रहकर केवलज्ञान प्राप्त किया। सोलह वर्ष केवली पर्याय में रहकर इन्होंने भगवान के जीवनकाल में ही गुणशील चैत्य में एक मास के अनशन से मुक्ति प्राप्त की। इनकी पूर्ण आयु चौहत्तर वर्ष की थी।
3. वायुभूति
तीसरे गणधर वायुभूति भी इन्द्रभूति तथा अग्निभूति के छोटे सहोदर थे। इन्द्रभूति की तरह इन्होंने भी 'तज्जीव तच्छरीर-वाद' को छोड़ कर भगवान महावीर से भूतातिरिक्त आत्मा का बोध पाकर पाँच सौ छात्रों के साथ प्रभु की सेवा में दीक्षा ग्रहण की। उस समय इनकी अवस्था बयालीस वर्ष की थी। दश वर्ष छद्ममस्थ भाव में साधना करके इन्होंने केवलज्ञान प्राप्त किया और ये अठारह वर्ष तक केवली रूप से विचरते रहे। भगवान महावीर के निर्वाण से दो वर्ष पहले एक मास के अनशन से इन्होंने भी सत्तर (70) वर्ष की अवस्था में गुणशील चैत्य में सिद्धि प्राप्त की।
4. आर्य व्यक्त
चौथे गणधर आर्य व्यक्त कोल्लाग सन्निवेश के भारद्वाज गोत्रीय ब्राह्मण थे। इनकी माता का नाम वारुणी और पिता का नाम धनमित्र था। इन्हें शंका थी कि ब्रह्म के अतिरिक्त सारा जगत् मिथ्या है। भगवान महावीर से अपनी शंका का सम्यक् समाधान पाकर इन्होंने भी पाँच सौ छात्रों के साथ पचास वर्ष की वय में प्रभ के पास श्रमण-दीक्षा ग्रहण की। बारह वर्ष तक छद्मस्थ साधना करके इन्होंने भी केवलज्ञान प्राप्त किया और अठारह वर्ष तक केवली-पर्याय में रहकर भगवान के जीवनकाल में ही एक मास के अनशन से गुणशील चैत्य में अस्सी वर्ष की वय में सकल कर्म क्षय कर मुक्ति प्राप्त की।
5. सुधर्मा
पंचम गणधर सुधर्मा 'कोल्लाग' सन्निवेश के अग्नि वेश्यायन गोत्रीय ब्राह्मण थे। इनकी माता का नाम भदिला और पिता का नाम धम्मिल था। इन्होंने भी जन्मान्तर विषयक संशय को मिटाकर भगवान के चरणों में पांच सौ छात्रों के साथ दीक्षा ग्रहण की। ये ही भगवान महावीर के उत्तराधिकारी आचार्य हुए। ये वीर निर्वाण के बीस वर्ष बाद तक संघ की सेवा करते रहे। अन्यान्य सभी गणधरों ने दीर्घजीवी समझ कर इनको ही अपने अपने गण संभला दिये थे। आप 50 वर्ष गृहवास में एवं 42 वर्ष छद्मस्थ पर्याय में रहे और 7 वर्ष केवली रूप से धर्म का प्रचार कर 100 वर्ष की पूर्ण आयु में राजगृह नगर में मोक्ष पधारे।
6. मंडित
छठे गणधर मंडित, मौर्य सन्निवेश के वसिष्ठ गोत्रीय ब्राह्मण थे। इनके पिता का नाम धनदेव और माता का नाम विजया देवी था। भगवान महावीर से आत्मा का संसारित्व समझ कर इन्होंने भी गौतम आदि की तरह तीन सौ पचास (350) छात्रों के साथ श्रमण दीक्षा ग्रहण की। दीक्षाकाल में इनकी अवस्था तिरेपन वर्ष की थी। चौदह वर्ष साधना कर सड़सठ (67) वर्ष की अवस्था में इन्होंने केवलज्ञान प्राप्त किया। भगवान के निर्वाण पूर्व इन्होंने भी केवलज्ञान प्राप्त किया। भगवान के निर्वाण पूर्व इन्होंने भी सोलह वर्ष केवली पर्याय में रह कर तिरासी (83) वर्ष की अवस्था में गुणशील चैत्य में अनशन पूर्वक मुक्ति प्राप्त की।
7. मौर्यपुत्र
सातवें गणधर मौर्यपुत्र मौर्य सन्निवेश के काश्यप गोत्रीय ब्राह्मण थे। इनके पिता का नाम मौर्य और माता का नाम विजया देवी था। देव और देवलोक सम्बन्धी शंका की निवृत्ति होने पर इन्होंने भी तीन सौ पचास (350) छात्रों के साथ पैंसठ वर्ष की वय में श्रमण दीक्षा स्वीकार की। 14 वर्ष छद्मस्थ भावों में रहकर उन्हासी (79) वर्ष की अवस्था में इन्होंने तपस्या से केवलज्ञान प्राप्त किया और सोलह वर्ष तक केवली पर्याय में रहकर भगवान के सामने ही पचानवे (95) वर्ष की अवस्था में गुणशील चैत्य में अनशनपूर्वक निर्वाण प्राप्त किया।
8. अकम्पित
आठवें गणधर अकम्पित मिथिला के रहने वाले, गौतम गोत्रीय ब्राह्मण थे। आपकी माता का नाम जयन्ती और पिता का नाम देव था। नरक और नारकीय जीव सम्बन्धी संशय-निवृत्ति के बाद इन्होंने भी अड़तालीस वर्ष की अवस्था में अपने तीन सौ शिष्यों के साथ भगवान महावीर की सेवा में श्रमण दीक्षा स्वीकार की। 9 वर्ष तक छद्मस्थ रहकर सत्तावन वर्ष की अवस्था में इन्होंने केवल ज्ञान प्राप्त किया और इक्कीस वर्ष केवली-पर्याय में रह कर प्रभु के जीवन के अन्तिम वर्ष में गुणशील चैत्य में एक मास का अनशन पूर्ण कर अठहत्तर वर्ष की अवस्था में निर्वाण प्राप्त किया।
9. अचलभ्राता
नवें गणधर अचलधाता कोशला निवासी हारीत गोत्रीय ब्राह्मण थे। आपकी माता का नाम नन्दा और पिता का नाम वसु था। पुण्य-पाप सम्बन्धी अपनी शंका निवृत्ति के बाद इन्होंने भी छियालीस वर्ष की अवस्था में तीन सौ छात्रों के साथ भगवान महावीर की सेवा में श्रमण दीक्षा स्वीकार की। बारह वर्ष पर्यन्त तीव्र तप एवं ध्यान कर अट्ठावन वर्ष की अवस्था में आपने केवलज्ञान प्राप्त किया और चौदह वर्ष केवलीपर्याय में रह कर बहत्तर वर्ष की वय में एक मास का अनशन कर गुणशील चैत्य में निर्वाण प्राप्त किया।
10. मेतार्य
दसवें गणधर मेतार्य, वत्स देशान्तर्गत तुंगिक सन्निवेश के रहने वाले कौडिन्य गोत्रीय ब्राह्मण थे। इनकी माता का नाम वरुणा देवी और पिता का नाम दत्त था। इनको पुनर्जन्म सम्बन्धी शंका थी। भगवान महावीर से समाधान प्राप्त कर तीन सौ छात्रों के साथ छत्तीस वर्ष की अवस्था में इन्होंने भी श्रमण-दीक्षा स्वीकार की। दश वर्ष की साधना के बाद छियालीस वर्ष की अवस्था में इन्हें केवलज्ञान प्राप्त हुआ और सोलह वर्ष केवली-पर्याय में रह कर भगवान के जीवनकाल में ही बासठ वर्ष की अवस्था में गुणशील चैत्य में इन्होंने निर्वाण प्राप्त किया।
11. प्रभास
ग्यारहवें गणधर प्रभास राजगृह के रहने वाले, कौडिन्य गोत्रीय ब्राह्मण थे। इनकी माता का नाम 'अतिभद्रा' और पिता का नाम बल था। मुक्ति विषयक शंका का प्रभु महावीर द्वारा समाधान हो जाने पर इन्होंने भी तीन सौ शिष्यों के साथ सोलह वर्ष की अवस्था में भगवान महावीर का शिष्यत्व स्वीकार किया। आठ वर्ष बाद चौबीस वर्ष की अवस्था में इन्हें केवलज्ञान प्राप्त हुआ और सोलह वर्ष तक केवली-पर्याय में रहकर चालीस वर्ष की वय में गुणशील चैत्य में एक मास का अनशन कर इन्होंने भगवान के जीवनकाल में ही निर्वाण प्राप्त किया। सबसे छोटी आयु में दीक्षित होकर केवलज्ञान प्राप्त करने वाले ये ही एक गणधर हैं।
ये सभी गणधर जाति से ब्राह्मण और वेदान्त के पारगामी पण्डित थे व इन सबका संहनन वज्र ऋषभ नाराच तथा समचतुरस्त्र संस्थान था। दीक्षित होकर सबने द्वादशांग का ज्ञान प्राप्त किया, अतः सब चतुर्दश पूर्वधारी एवं विशिष्ट लब्धियों के धारक थे।
जैन धर्म का मौलिक इतिहास पुस्तक से साभार