सवणे णाणे

अक्रिया का फल सिद्धि है।

सवणे णाणे

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सवणे णाणे


सवणे णाणे य विण्णाणे पच्चक्खाणे य संजमे।
अणण्हये तवे चेव वोदाणे अकिरिया सिद्धी॥


पर्युपासना प्रथम फल श्रवण, श्रवण का फल ज्ञान, ज्ञान का फल विज्ञान, विज्ञान का फल प्रत्याख्यान,
प्रत्याख्यान का फल संयम,
संयम का फल अनास्रवत्व,
अनास्रवत्व का फल तप,
तप का फल व्यवदान,
व्यवदान का फल अक्रिया, और
अक्रिया का फल सिद्धि है।

शास्त्रों के श्रवण से सामान्य ज्ञान, समझने से विशेष ज्ञान, फिर प्रत्याख्यान और संयम की प्राप्ति होती है, जिससे तृष्णा का निवारण होता है, और फिर तप और संयम से धीरे-धीरे अकर्म की अवस्था प्राप्त होती है। अकर्मा हो चुका आत्मा सिद्धि की अवस्था को प्राप्त होता है।

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