मूल
जिससे वस्तु की तथा गुण या दोष की उत्पत्ति हो, उसे 'मूल' कहते हैं। मूल ही विकसित होकर फल बनता है।
१. समस्त गुणों का मूल विनय है।
२. सभी रसों का मूल पानी है।
३. सभी पापों का मूल लोभ है।
४. सभी धर्मों का मूल दया है।
५. सभी कलह का मूल हँसी है।
६. सभी रोगों का मूल अजीर्ण है।
७. सभी प्रकार के मरण का मूल शरीर है।
८. सभी बन्धनों का मूल स्नेह है।