"यदि धामिक क्रियायें संपन्न न की जाये तो क्या नुकसान है ?" यह प्रश्न वर्षों से किया जा रहा है । लेकिन कोई भूलकर भी यह प्रश्न नहीं करता कि 'यदि पाप-क्रियायें न करें, तो क्या हर्ज है ?' सचमुच ऐसा प्रश्न कोई नहीं उठाता और उसका भी कारण है ! क्योंकि पाप-क्रियायें सब को पसन्द हैं । यदि धर्म पसन्द है, तो धार्मिक क्रियायें भी पसन्द होनी ही चाहिये। मोक्ष इष्ट है, तो मोक्ष-प्राप्ति के लिये आवश्यक क्रियायें इष्ट होनी हो चाहिये ।
न्यायाचार्य न्यायविशारद महोपाध्याय श्री यशोविजयजी विरचित ज्ञानसार
विवेचनकार प्रन्यासप्रवर श्री भद्रगुप्तविजयजी गणिवर