सुविचार - दशवेकालिक

क्रोध, मान, माया और लोभ-ये चारों कषाय पाप की वृद्धि करने वाले है,अतः आत्मा का हित चाहने वाला साधक इन दोषों का परित्याग कर दे।

सुविचार - दशवेकालिक

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कोहं माणं च मायं च लोभं च पापवड्ढणं।
वमे चत्तारि दोसे उ इच्छन्तो हियमप्पणो॥ - दशवेकालिक ८|३७

क्रोध, मान, माया और लोभ-ये चारों कषाय पाप की वृद्धि करने वाले है,अतः आत्मा का हित चाहने वाला साधक इन दोषों का परित्याग कर दे।

अपनी आत्मा का हित चाहने वाले साधक को चाहिए कि - वह क्रोध, मान, माया और पाप वर्धक लोभ का वमन कर दे। गाथा में "वमन" करना कहा है। इसका आशय यह है कि - छोड़ी हुई वस्तु को तो पच्चक्खाण के काल की मर्यादा के उपरान्त व्यक्ति फिर उस वस्तु को ग्रहण कर लेता है किन्तु वमन की हुई चीज को कोई भी ग्रहण नहीं करता। इसीलिये ज्ञानियों का फरमाना है कि - क्रोधादि कषाय को केवल छोड़े ही नहीं किन्तु सर्वथा वमन कर देना चाहिये फिर कभी ग्रहण नहीं करना चाहिये।

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