भव बीजांकुरजनना रागाद्दा: क्षयमुपागता यस्य।
ब्रह्मा वा विष्णुर्वा हरो जिनो वा नमस्तस्मै।।
जन्म-श्रृंखला के कारणभूत रागद्वेष आदि जिसके क्षीण हो गए हैं
उस आत्मा को नमस्कार है फिर नाम से वह चाहे
ब्रह्मा हो, विष्णु हो, शिव हो, जिन हो-कोई भी हो।
- वीतरागस्तोत्र-प्रकरण (आचार्य हेमचंद्र)