मनुष्य जीवन मूलधन है। देवगति उसमें लाभ रूप है। मूलधन के नाश होने पर नरक, तिर्यचगति रूप हानि होती है।
माणुसत्तं भवे मूलं, लाभो देवगई भवे । मूलच्छेएण जीवाणं, णरगतिरिक्खत्तणं धुवं ।।मनुष्य जीवन मूलधन है। देवगति उसमें लाभ रूप है। मूलधन के नाश होने पर नरक, तिर्यचगति रूप हानि होती है । श्री उत्तराध्ययन सूत्र