सामायिक कब करें ?
वैसे तो परिपक्व दशा में पहुँचा हुआ उत्कृष्ट साधक काल से बद्ध नहीं होता, उसके लिए हर समय ही साधना का काल है। इसीलिए साधु के लिए यावज्जीवन की सामायिक बतलाई है। साधु का हर क्षण सामायिक स्वरूप होता है। अत: यहाँ उत्कृष्ट साधक का प्रश्न नहीं, प्रश्न है - साधारण साधक का। उसके लिए नियमितता आवश्यक है। समय की नियमितता का मन पर बड़ा चमत्कारी प्रभाव होता है। रोगी को भी औषधि समय पर दी जाती है।
सामायिक के लिए प्रात:काल और सायंकाल का समय बहुत ही सुंदर है। प्रकृति के लीला-क्षेत्र संसार में वस्तुत: इधर सूर्योदय का और उधर सूर्यास्त का समय, बड़ा ही सुरम्य एवं मनोहर होता है।
प्रभात का समय तो ध्यान, चिंतन आदि के लिए बहुत सुंदर माना गया है। सुनहरा प्रभात, एकांत, शांति और प्रसन्नता आदि की दृष्टि से वस्तुतः प्रकृति का श्रेष्ठ रूप है । इस समय हिंसा और क्रूरता नहीं होती, दूसरे मनुष्यों के साथ सम्पर्क न होने के कारण असत्य एवं कटु भाषण का भी अवसर नहीं आता, सायंकाल का समय भी दूसरे समयों की अपेक्षा शांत माना गया है।
पुस्तक सामायिक दर्शन (सम्यकज्ञान प्रचारक मंडल) से साभार