राजीमती

राजीमती ने कितना महान् त्याग किया एक प्रेम के लिये! वैषयिक सुखों की इच्छाओं का त्याग कर दिया!

राजीमती

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राजीमती एक स्त्री थी। आठ-आठ जन्मों से भगवान नेमनाथ के साथ उसका प्रेमसंबंध था। हालाँकि यह प्रेमसंबंध शारीरिक और मानसिक था। अंतिम भव में राजीमती की कसौटी हुई। अंतिम भव में अपने प्रियतम के साथ उसका शारीरिक संबंध असंभव हो गया था। परंतु उसने मानसिक संबंध नहीं तोड़ा। मानसिक प्रेम का उसने आध्यात्मिक प्रेम में रूपान्तर कर दिया। आत्मा से आत्मा का प्रेम।

जब तक नेमिनाथ को केवलज्ञान प्रगट नहीं हुआ, तब तक राजीमती इन्तजार करती रही। नेमिनाथ को केवलज्ञान होने के समाचार मिलते ही वह उनके चरणों में पहुंच गई और दीक्षा ग्रहण कर साध्वी बन गई।

राजीमती ने कितना महान् त्याग किया एक प्रेम के लिये! वैषयिक सुखों की इच्छाओं का त्याग कर दिया!

चूंकि नेमिनाथ का यह उपदेश था कि वैषयिक सुखों की इच्छा नहीं करना । उसने नेमिनाथ के प्रति अपने हृदय में जो आकर्षण था, वह भी तोड़ दिया। चूंकि नेमिनाथ का उपदेश था कि परद्रव्य से राग नहीं करना, द्वेष नहीं करना। अपने ही आत्मगव्य में लीन होने की प्रेरणा थी नेमिनाथ की। राजीमती ने भगवान के मार्गदर्शन से अद्भुत आत्मशुद्धि पायी और भगवान से पूर्व ही मोक्ष पा लिया।

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