उदय और उदीरणा के स्वरूप में अन्तर
उदय का सामान्यतया अर्थ है - विपाक के समय फल को भोगनाः जबकि उदीरणा का अर्थ है - विपाक का समय न होने पर भी फल का भोग करना 'उदीरणा' है। स्पष्ट शब्दों में कहें तो आत्मा के साथ बंधे हुए कर्मदलिकों का अपने-अपने नियत समय शुभ-अशुभ फलों का अच्छा-बुरा अनुभव कराना उदय है; जबकि बंधे हुए कर्मदलिकों को प्रयत्न विशेष से खींचकर नियत-समय से पहले ही उनके शुभ-अशुभ फलों को समभाव से धैर्य या शान्ति से भोग लेना उदीरणा कहलाती है।
कर्मों के शुभाशुभ फल को भोगने का ही नाम उदय और उदीरणा है। किन्तु इन दोनों में अन्तर यह है कि उदय में प्रयत्न बिना ही स्वाभाविक क्रम से फलभोग होता है, जबकि उदीरणा में फलोदय का काल प्राप्त न होने पर भी प्रयत्न द्वारा बद्धकर्मों को, जो कि सत्ता में पड़े हैं, उन्हें प्रयत्न द्वारा उदयोन्मुख करके फल भोगना होता है।