ज्ञानावरणीय कर्म और उसके बन्धन के कारण

जिस प्रकार बादल सूर्य के प्रकाश को ढँक देते हैं, उसी प्रकार जो कर्म-वर्गणाएँ आत्मा की ज्ञान-शक्ति को ढँक देती हैं और ज्ञान की प्राप्ति में बाधक बनती है, वे ज्ञानावरणीय कर्म कही जाती है।

ज्ञानावरणीय कर्म और उसके बन्धन के कारण

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ज्ञानावरणीय कर्म और उसके बन्धन के कारण

ज्ञानावरणीय कर्म

जिस प्रकार बादल सूर्य के प्रकाश को ढँक देते हैं, उसी प्रकार जो कर्म-वर्गणाएँ आत्मा की ज्ञान-शक्ति को ढँक देती हैं और ज्ञान की प्राप्ति में बाधक बनती है, वे ज्ञानावरणीय कर्म कही जाती है। ज्ञानावरणीय कर्म के बन्धन के कारण - जिन कारणों से ज्ञानावरणीय कर्म के परमाणु आत्मा से संयोजित होकर ज्ञान-शक्ति को कुठित करते है, ये छह है
१. प्रदोष - ज्ञानी का अवर्णवाद (निन्दा) करना एवं उसके अवगुण निकालना।
२. निन्हव - ज्ञानी का उपकार स्वीकार न करना अथवा किसी विषय को जानते हुए भी उसका अपलाप करना।
३. अन्तराय - ज्ञान की प्राप्ति में बाधक बनना, ज्ञानी एवं ज्ञान के साधन पुस्तकादि को नष्ट करना।
४, मात्सर्य - विद्वानों के प्रति द्वेष-बुद्धि रखना, ज्ञान के साधन पुस्तक आदि में अरुचि रखना।
५. असातना - ज्ञान एवं ज्ञानी पुरुषों के कथनों को स्वीकार नहीं करना, उनका समुचित विनय नहीं करना।
६. उपघात - विद्वानों के साथ मिथ्याग्रह-युक्त विसंवाद करना अथवा स्वार्थवश सत्य को असत्य सिद्ध करने का प्रयत्न करना। उपयुक्त छह प्रकार का अनैतिक आचरण व्यक्ति की ज्ञान-शक्ति के कुंठित होने का कारण है।

ज्ञानावरणीय कर्म का विपाक - विपाक की दृष्टि से ज्ञानावरणीय कर्म के कारण पाँच रूपों में आत्मा की ज्ञान-शक्ति का आवरण होता है - (१) मतिज्ञानावरण - ऐन्द्रिक एवं मानसिक ज्ञानक्षमता का अभाव, (२) श्रुतज्ञानावरण - बौद्धिक अथवा आगम ज्ञान की अनुपलब्धि, (३) अवधिज्ञानावरण - अतीन्द्रिय ज्ञान-क्षमता का अभाव, (४) मनःपर्याय ज्ञानावरण - दूसरे की मानसिक अवस्थाओं का ज्ञान प्राप्त कर लेने की शक्ति का अभाव, (५) केवलज्ञानावरण - पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने की क्षमता का अभाव।

कहीं-कहीं विपाक की दृष्टि से इसके १० भेद भी बताये गये हैं-
(१) सुनने की शक्ति का अभाव, (२) सुनने से प्राप्त होने वाले ज्ञान की अनुपलब्धि, (३) दृष्टि शक्ति का अभाव, (४) दृश्यज्ञान की अनुपलब्धि, (५) गंधग्रहण करने की शक्ति का अभाव, (६) गन्ध सम्बन्धी ज्ञान की अनुपलब्धि, (७) स्वाद ग्रहण करने की शक्ति का अभाव, (८) स्वाद सम्बन्धी ज्ञान की अनुपलब्धि, (९) स्पर्श-क्षमता का अभाव और (१०) स्पर्श सम्बन्धी ज्ञान की अनुपलब्धि।

पुस्तक द्रव्यानुयोग से साभार लेखक मुनि श्री कन्हैयालालजी "कमल"

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