नारकी और देवो की भव स्थिति

जीव जितने काल तक जिस भव की पर्याय को धारण करे,उसे ‘स्थिति’ कहते है। समुच्चय नारकी का नेरिया और देवो की स्थिति जघन्य दस हजार वर्ष की, उत्कृष्ट 33 सागरोपम की।

नारकी और देवो की भव स्थिति

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स्थिति- जीव जितने काल तक जिस भव की पर्याय को धारण करे,उसे ‘स्थिति’ कहते है।

समुच्चय नारकी और देवो की भव स्थिति

समुच्चय नारकी का नेरिया की स्थिति जघन्य दस हजार वर्ष की, उत्कृष्ट 33 सागरोपम की।

पहली नरक के नेरिये की स्थिति जघन्य 10 हजार वर्ष उत्कृष्ट 1 सागरोपम।
दूसरी नरक के नेरिये की स्थिति जघन्य 1 सागरोपम उत्कृष्ट 3 सागरोपम।
तीसरी नरक के नेरिये की स्थिति जघन्य 3 सागरोपम उत्कृष्ट 7 सागरोपम।
चौथी नरक के नेरिये की स्थिति जघन्य 7 सागरोपम उत्कृष्ट 10 सागरोपम।
पाँचवी नरक के नेरिये की स्थिति जघन्य 10 सागरोपम उत्कृष्ट 17 सागरोपम।
छठी नरक के नेरिये की स्थिति जघन्य 17 सागरोपम उत्कृष्ट 22 सागरोपम।
सातवीं नरक के नेरिये की स्थिति जघन्य 22 सागरोपम उत्कृष्ट 33 सागरोपम।

समुच्चय देवो की स्थिति जघन्य दस हजार वर्ष की, उत्कृष्ट 33 सागरोपम की।

भवनपति देवों में असुरकुमार जाति के दो इन्द्र हैं- चमरेन्द्र और बलीन्द्र । चमरेन्द्रजी के रहने की चमरचंचा राजधानी जम्बूद्वीप के मेरू पर्वत से दक्षिण दिशा में अधोलोक में है। बलीन्द्रजी के रहने की बलिचंचा राजधानी जम्बूद्वीप के मेरू पर्वत से उत्तर दिशा में अधोलोक में है।

चमरेन्द्रजी के भवनवासी देवों की स्थिति जघन्य दस हजार वर्ष की, उत्कृष्ट एक सागरोपम की और उनकी देवी की स्थिति जघन्य दस हजार वर्ष, उत्कृष्ट साढ़े तीन पल्योपम की। शेष नौ जाति के दक्षिण दिशा के भवनपति देवों की स्थिति जघन्य दस हजार वर्ष, उत्कृष्ट डेढ़ पल्योपम और उनकी देवी की स्थिति जघन्य दस हजार वर्ष, उत्कृष्ट पौन पल्योपम की।

बलीन्द्रजी के भवनवासी देवों की स्थिति जघन्य दस हजार वर्ष, उत्कृष्ट एक सागरोपम झाझेरी। उनकी देवी की स्थिति जघन्य दस हजार वर्ष, उत्कृष्ट साढ़े चार पल्योपम। शेष नौ जाति के उत्तर दिशा वाले भवनपति देवों की स्थिति जघन्य दस हजार वर्ष, उत्कृष्ट देशोन दो पल्योपम। उनकी देवी की स्थिति जघन्य दस हजार वर्ष, उत्कृष्ट देशोन एक पल्योपम की ।

वाणव्यन्तर देवों की स्थिति जघन्य दस हजार वर्ष, उत्कृष्ट 1 पल्योपम। उनकी देवी की स्थिति जघन्य दस हजार वर्ष, उत्कृष्ट आधा पल्योपम।

ज्योतिषी देवो की स्थिति:

ज्योतिषी देवों के पाँच भेद - 1.चन्द्र, 2.सूर्य, 3.ग्रह, 4.नक्षत्र और 5.तारा।

चन्द्र विमानवासी देवों की स्थिति जघन्य पाव पल्योपम, उत्कृष्ट 1 पल्योपम और एक लाख वर्ष।
चन्द्र विमानवासी देवियों की स्थिति जघन्य पाव पल्योपम, उत्कृष्ट आधा पल्योपम और 50 हजार वर्ष।

सूर्य विमानवासी देवों की स्थिति जघन्य पाव पल्योपम, उत्कृष्ट एक पल्योपम और एक हजार वर्ष।
सूर्य विमानवासी देवियों की स्थिति जघन्य पाव पल्योपम, उत्कृष्ट आधा पल्योपम और पाँच सौ वर्ष।

ग्रह विमानवासी देवों की स्थिति जघन्य पाव पल्योपम, उत्कृष्ट एक पल्योपम।
ग्रह विमानवासी देवियों की स्थिति जघन्य पाव पल्योपम, उत्कृष्ट आधा पत्योपम।

नक्षत्र विमानवासी देवों की स्थिति जघन्य पाव पल्योपम, उत्कृष्ट आधा पल्योपम।
नक्षत्र विमानवासी देवियों की स्थिति जघन्य पाव पल्योपम, उत्कृष्ट पाव पल्योपम झाझेरी।

तारा विमानवासी देवों की स्थिति जघन्य पल्योपम के आठवें भाग, उत्कृष्ट पाव पल्योपम।
तारा विमानवासी देवियों की स्थिति जघन्य पल्योपम के आठवें भाग, उत्कृष्ट पल्योपम के आठवें भाग झाझेरी।

वैमानिक देवों की स्थिति :

पहले देवलोक के देवों की स्थिति
जघन्य 1 पल्योपम, उत्कृष्ट 2 सागरोपम

उनकी देवियाँ दो प्रकार की हैं 1. परिगृहीता और 2. अपरिगृहीता
परिगृहीता देवियों की स्थिति जघन्य 1 पल्योपम, उत्कृष्ट 7 पल्योपम
अपरिगृहीता देवियों की स्थिति जघन्य 1 पल्योपम, उत्कृष्ट 50 पल्योपम

दूसरे देवलोक के देवों की स्थिति
जघन्य 1 पल्योपम झाझेरी, उत्कृष्ट 2 सागरोपम झाझेरी
परिगृहीता देवियों की स्थिति जघन्य 1 पल्योपम झाझेरी, उत्कृष्ट 9 पल्योपम झाझेरी
अपरिगृहीता देवियों की स्थिति जघन्य 1 पल्योपम, उत्कृष्ट 55 पल्योपम।

तीसरे देवलोक के देवों की स्थिति जघन्य 2 सागरोपम उत्कृष्ट 7 सागरोपम
चोथे देवलोक के देवों की स्थिति जघन्य 2 सागरोपम झाझेरी उत्कृष्ट 7 सागरोपम झाझेरी
पाचवे देवलोक के देवों की स्थिति जघन्य 7 सागरोपम उत्कृष्ट 10 सागरोपम
छठे देवलोक के देवों की स्थिति जघन्य 10 सागरोपम उत्कृष्ट 14 सागरोपम
सातवे देवलोक के देवों की स्थिति जघन्य 14 सागरोपम उत्कृष्ट 17 सागरोपम
आठवे देवलोक के देवों की स्थिति जघन्य 17 सागरोपम उत्कृष्ट 18 सागरोपम
नौवे देवलोक के देवों की स्थिति जघन्य 18 सागरोपम उत्कृष्ट 19 सागरोपम
दसवे देवलोक के देवों की स्थिति जघन्य 19 सागरोपम उत्कृष्ट 20 सागरोपम
ग्यारहवे देवलोक के देवों की स्थिति जघन्य 20 सागरोपम उत्कृष्ट 21 सागरोपम
बारहवे देवलोक के देवों की स्थिति जघन्य 21 सागरोपम उत्कृष्ट 22 सागरोपम

नव लोकान्तिक देवों की स्थिति जघन्य उत्कृष्ट 8 सागरोपम की भगवती सूत्र शतक 6 उद्देशक 5 में तथा ठागांग स्थान 8 में बतलायी गयी है।

पहले ग्रेवेयक के देवों की स्थिति जघन्य 22 सागरोपम उत्कृष्ट 23 सागरोपम
दूसरे ग्रेवेयक के देवों की स्थिति जघन्य 23 सागरोपम उत्कृष्ट 24 सागरोपम
तीसरे ग्रेवेयक के देवों की स्थिति जघन्य 24 सागरोपम उत्कृष्ट 25 सागरोपम
चोथे ग्रेवेयक के देवों की स्थिति जघन्य 25 सागरोपम उत्कृष्ट 26 सागरोपम
पाचवे ग्रेवेयक के देवों की स्थिति जघन्य 26 सागरोपम उत्कृष्ट 27 सागरोपम
छठे ग्रेवेयक के देवों की स्थिति जघन्य 27 सागरोपम उत्कृष्ट 28 सागरोपम
सातवे ग्रेवेयक के देवों की स्थिति जघन्य 28 सागरोपम उत्कृष्ट 29 सागरोपम
आठवे ग्रेवेयक के देवों की स्थिति जघन्य 29 सागरोपम उत्कृष्ट 30 सागरोपम
नौवे ग्रेवेयक के देवों की स्थिति जघन्य 30 सागरोपम उत्कृष्ट 31 सागरोपम

चार अनुत्तर विमान के देवों की स्थिति जघन्य 31 सागरोपम उत्कृष्ट 33 सागरोपम
सवार्थसिद्ध विमान के देवों की स्थिति अजघन्य अनुत्कृष्ट 33 सागरोपम

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