पच्चीस बोल-बारहवें बोले पाँच इन्द्रियों के तेईस विषय और 240 विकार

इस संसार में जितने भी जीव हैं उन सबको शरीर एवं इन्द्रियाँ मिली हुई हैं। इन्द्रियों की सहायता से वे अपनी दैनिक आवश्यकताओं को पूर्ण करते हुए जीवन-निर्वाह करते हैं। प्रत्येक इन्द्रियाँ भिन्न-भिन्न विषयों को ग्रहण करती हैं।

पच्चीस बोल-बारहवें बोले पाँच इन्द्रियों के तेईस विषय और 240 विकार

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पच्चीस बोल - बारहवें बोले पाँच इन्द्रियों के तेईस विषय और 240 विकार।

बारहवें बोले पाँच इन्द्रियों के तेईस विषय और 240 विकार।

इस संसार में जितने भी जीव हैं उन सबको शरीर एवं इन्द्रियाँ मिली हुई हैं। इन्द्रियों की सहायता से वे अपनी दैनिक आवश्यकताओं को पूर्ण करते हुए जीवन-निर्वाह करते हैं। प्रत्येक इन्द्रियाँ भिन्न भिन्न विषयों को ग्रहण करती हैं।

विषय - जो इन्द्रियाँ पुद्गल के जिन गुण-धर्म को ग्रहण करती हैं, वे उस इन्द्रिय के विषय' कहलाते हैं। अर्थात् इन्द्रियों के माध्यम से जीव जिन शब्द, रूप आदि को ग्रहण करता है उसे ' विषय' कहते हैं।
विकार - ग्रहण किये गये विषयों को अच्छा-बुरा मानकर उन पर राग-द्वेष करना 'विकार' कहलाता है।

पाँच इन्द्रियों के 23 विषय और 240 विकार इस प्रकार हैं

1. श्रोत्रेन्द्रिय के तीन विषय - जीव शब्द, अजीव शब्द और मिश्र शब्द।
जीव शब्द - संसारी जीवों से निकलने वाली आवाज को जीव शब्द कहते हैं।
अजीव शब्द - अचेतन पदार्थों से उत्पन्न होने वाले शब्द अजीव शब्द हैं।
मिश्र शब्द - जीव और अजीव के संयोग से उत्पन्न होने वाले शब्द मिश्र शब्द हैं। जैसे-बाँसुरी या हारमोनियम की आवाज।
विकार - ये 3 शुभ, 3 अशुभ, इन 6 पर राग और 6 पर द्वेष, इस प्रकार 12 विकार।
इन विकारों में सचित्त, अचित्त और मिश्र का अलग से भेद इसलिए नहीं किया गया है कि सचित्त का समावेश जीव में, अचित्त का समावेश अजीव में और मिश्र का समावेश मिश्र में हो जाता है।

2. चक्षुरिन्द्रिय के पाँच विषय - 1. काला, 2. नीला, 3. लाल, 4. पीला और 5. सफेद।
विकार- ये 5 सचित्त, 5 अचित्त और 5 मिश्र। ये 15 शुभ और 15 अशुभ, इन 30 पर राग और 30 पर द्वेष। इस प्रकार 60 विकार।

3. घ्राणेन्द्रिय के 2 विषय - 1. सुरभिगंध, 2. दुरभिगंध।
विकार - ये 2 सचित्त, 2 अचित्त और 2 मिश्र। इन 6 पर राग और 6 पर द्वेष। इस प्रकार 12 विकार। विकार के भेदों में शुभ और अशुभ का भेद अलग से नहीं लिया गया है क्योंकि सुगंध का तात्पर्य शुभ से और दुर्गन्ध का तात्पर्य अशुभ से है।

4. रसनेन्द्रिय के पाँच विषय - 1. तीखा, 2. कड़वा, 3. कषैला, 4. खट्टा और 5. मीठा।
विकार - ये 5 सचित्त, 5 अचित्त और 5 मिश्र। ये 15 शुभ ओर 15 अशुभ, इन 30 पर राग और 30 द्वेष। इस प्रकार 60 विकार।

5. स्पर्शनेन्द्रिय के आठ विषय - 1. कर्कश (खुरदरा), 2. मृदु (कोमल), 3. लघु (हल्का ), 4. गुरु (भारी), 5.शीत (ठण्डा), 6. उष्ण (गर्म), 7. रुक्ष (लूखा) और 8. स्निग्ध (चिकना)।
विकार - ये 8 सचित्त, 8 अचित्त, 8 मिश्र, ये 24 शुभ और 24 अशुभ, इन 48 पर राग ओर 48 पर द्वेष। इस प्रकार 96 विकार।

• आधार-प्रज्ञापन सूत्र, पद-15

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