नवकार अथवा णमोकार :
वास्तव में तो 'नवकार' प्राकृत भाषा का शब्द है, जिसका संस्कृत शब्द है 'नमस्कार' नमस्कार का ही वाची और नमस्कार के अर्थ में ही नवकार शब्द प्रयुक्त होता है। प्राकृत व्याकरण के नियमानुसार स्वजातीय अक्षर ही संयुक्ताक्षर के रुप आ सकते हैं । उदाहरणार्थ नमुक्कारो, सव्र्वसि, परन्त अन्य विजातीय भिन्न अक्षर साथ मिलकर संस्कृत भाषा की तरह संयुक्ताक्षर प्राकृत भाषा में प्रयुक्त नहीं होते हैं । नवकार महामंत्र मूलतः प्राकृत भाषा में हैं । प्राकृत भाषा किसी समय लोक भाषा के रुप में प्रचलित थी । प्राकृत भाषा की दृष्टि से नमस्कार का ही नवकार शब्द बनता है । नवकार का अर्थ नमस्कार ही होता है, अतः नवकार मंत्र कहें अथवा नमस्कार मंत्र कहें - बात एक ही है।
'न' अथवा 'ण' नवकार भी बोला जाता है और णमोकार भी बोला जाता है, दोनों में सही और गलत का विचार करने की आवश्यकता नहीं है, क्यों कि दोनों ही सही है । प्राकृत भाषा के व्याकरण के नियमानुसार 'न' का विकल्प 'ण' होता है, अतः 'न' या 'ण' दोनों में से कोई भी बोल सकते हैं । विकल्प का अर्थ ही होता है यह भी और वह भी । अतः नमोकार बोलो अथवा णमोकार बोलो - दोनों एक ही बात है । सही और गलत का प्रश्न ही नहीं उठता । दोनों ही सही ही है । नवकार महामंत्र का प्रारंभ नमो से होता है अतः नमोकार मंत्र और णमोकार मंत्र दोनों ही शब्द नाम प्रयुक्त होते हैं। अतः इसे णमोकार मंत्र भी कहते है। इसीलिये दिगम्बर संप्रदाय में णमोकार मंत्र नाम प्रचलित और प्रसिद्ध हुआ है। उनमें णमोकार मंत्र के नाम से बोलने की रुढि हो गई है, जबकि श्वेतांबर संप्रदाय में नवकार शब्द अधिक प्रचलित हुआ है।
इसी प्रकार 'नमो अरिहंताणं" पद सच्चा है अथवा 'णमो अरिहंताणं' पद सच्चा है। इन प्रश्नों के उत्तर में भी उपर्युक्त नियम ही लागू होगा । 'न' का 'ण' विकल्प से होता है अतः 'न' भी चलता है और 'ण' भी चलता है, फिर भी एक पक्ष 'ण' पर अधिक बल देता है, इसका अर्थ यह न समझें कि दूसरे पक्ष का 'न' गलत है । इसलिये दोनों ही 'ण' और 'न' प्रचलित हैं। यदि 'न' गलत होता तो कभी से लुप्त हो गया होता।
नमस्कार महामंत्र का अनुप्रेक्षात्मक विज्ञान पुस्तक से साभार