तीर्थंकर जघन्य २० उत्कृष्ट १७०
क्षेत्र की दृष्टि से विचार करने पर ढाई द्वीप के १५ कर्म भूमिओं के १५ क्षेत्र तीर्थकर भगवान के बनने और विचरण करने के क्षेत्र हैं। क्यों कि यही धर्म के क्षेत्र है। ढाई द्वीप में प्रथम जंबुद्वीप मे, दूसरे घातकी खंड में और तीसरे पुष्करार्ध द्वीप में कुल मिलाकर १५ क्षेत्र हैं ।
जंबुद्वीप में एक भरत क्षेत्र, एक ऐरावत क्षेत्र तथा एक महाविदेह क्षेत्र इस प्रकार कुल ३ कर्मभूमि के क्षेत्र है। घातकी खंड और पुष्करार्ध क्षेत्र में कुल दो भरत, दो ऐरावत तथा दो महाविदेह क्षेत्र है ऐसे ५ भरत, ५ ऐरावत और ५ महाविदेह क्षेत्र कुल मिलाकर १५ कर्मभूमि के क्षेत्र है । जहाँ असि, मसि, और कृषि का व्यापार चलता हो उसे कर्मभूमि क्षेत्र कहते हैं, इन्ही क्षेत्रों में पंच परमेष्ठि भगवंत होते हैं अतः धर्मादि की सभी अनुकूलता. यहीं होती है।
कालिक दृष्टि से महाविदेह क्षेत्र में शाश्वत काल है। वहाँ सदेव चोथा आरा ही प्रवर्तित रहता हैं । जैसा चौथा आरा भरत क्षेत्र में होता है ठीक वैसा ही काल पाँचों ही महाविदेह क्षेत्र में शाश्वत रुप से चलता ही रहता है। यहां तीर्थंकरो का विरह होता ही नहीं है। वहाँ सदाकाल विचरण करनेवाले तीर्थतकर विहरमान जिन-तीर्थकर कहलाते हैं। ऐसे २० तीर्थकर होते हैं । वर्तमान काल में अर्थात आज भी ढाई द्वीप के पाँच महाविदह क्षेत्र में कुल मिलाकर २० तीर्थंकर हैं । एक महाविदेह क्षेत्र में चार तीर्थकर भगवंत विचरण करते हैं । इस समय विचरण करते हुए २० तीर्थकर भगवंतो के नाम इस प्रकार प्रचलित एवं प्रसिद्ध है
१. जंबुद्वीप के महाविदेह क्षेत्र में -
(१) सीमंधरस्वामी भगवान
(२) श्री युगमंधरस्वामी भगवान
(३) श्री बाहुस्वामी भगवान
(४) श्री सुबाहुस्वामी भगवान
२. घातकीखंड के महाविदेह में -
(५) श्री सुजातस्वामी भगवान
(६) श्री स्वयंप्रभस्वामी भगवान
(७) श्री ऋषभाननस्वामी भगवान
(८) श्री अनंतवीर्यस्वामी भगवान
(९) श्री सुरप्रभस्वामी भगवान
(१०) श्री विशालस्वामी भगवान
(११) श्री वज्रधरस्वामी भगवान
(१२) श्री चन्द्राननस्वामी भगवान
३. पुष्करार्ध द्वीप के महाविदेह क्षेत्र में -
(१३) श्री चंद्रबाहुस्वामी भगवान
(१४) श्री भुजंगस्वामी भगवान
(१५) श्री ईश्वरदेवस्वामी भगवान
(१६) श्री नमिप्रभस्वामी भगवान
(१७) श्री वारिषेणस्वामी भगवान
(१८) श्री महाभद्रस्वामी भगवान
(१९) श्री देवयशास्वामी भगवान
(२०) श्री अजितवीर्यस्वामी भगवान
जंबूद्वीप के एक महाविदेह में चार तीर्थकर, घातकीखंड खंड के पूर्व महाविदेह में चार, पश्चिम महाविदेह में चार और पुष्करार्ध द्वीप के पूर्व महाविदेह में चार, तथा पश्चिम महाविदेह में भी चार इस तरह ५ महाविदेह क्षेत्र में २० तीर्थकर होते हैं। उनकी स्तुति, वंदना, प्रार्थना, आराधनादि सतत अपने प्रदेशों में चलती रहती है।
उत्कृष्टता से १७० तीर्थंकर भगवंत :
१७० तीर्थकर भगवंतो की गणना निम्न प्रकार की गई है । ढाई द्वीप में १५ कर्मभूमियों है। ढाई द्वीप में पांच महाविदेह क्षेत्र है। एक महाविदेह क्षेत्र में ३२ विजय (१६ पूर्व की १६ पश्चिम की) होती है, प्रत्येक विजय में एक-एक तीर्थकर की गणना से एक महाविदेह क्षेत्र में ३२ तीर्थकर हो सकते हैं, ऐसे ५ महाविदेह क्षेत्र हैं, उन सभी में ३२-३२ के हिसाब से गिनने पर ३२ x ५ = १६० तीर्थंकर उत्कृष्ट रुप से हो सकते है। और वैसे ही भरतक्षेत्र भी पांच है तथा ऐरावत क्षेत्र भी पांच है, ये ५+५=१० क्षेत्र में १० तीर्थकर एक साथ हो सकते हैं, इस प्रकार १६०+५+५=१७० तीर्थकर अजितनाथ भगवान के काल में हुए थे। उत्कृष्ट रुप से समकालीन तीर्थकर इतने ही होते हैं, इससे ज्यादा नहीं।