व्यवहार सम्यक्त्व के 67 बोल
लिंग-3
(1) श्रद्धान-4, (2) लिंग-3, (3) विनय-10, (4) शुद्धि-3, (5) लक्षण-5, (6) दूषण-5, (7) भूषण-5, (8) प्रभावना-8, (9) आगार-6, (10) यतना-6, (11) भावना-6, (12) स्थानक-6.
लिंग - 3 : श्रद्धावान् व्यक्ति की वह बाह्य रुचि जिससे आन्तरिक रुचि का ज्ञान होता हो, उसे 'लिंग' कहते हैं।
1. जैसे तरुण पुरुष राग रंग में विशेष अनुराग रखता है उसी प्रकार भव्य जीव शास्त्र श्रवण में अनुरक्त रहे।
2. जैसे तीन दिन का भूखा आदमी खीर खांड का भोजन रुचि सहित करता है, उसी प्रकार वीतराग की वाणी आदर सहित सुने।
3. जिस प्रकार अनपढ़ को पढ़ने की चाह रहती है और पढ़ने के अवसर मिलते ही हर्षित होता है, उसी प्रकार वीतराग की वाणी सुनकर हर्षित होवे।