सिद्धों के प्रकार, गुण एवं स्वरूप

उत्तराध्ययन सूत्र के 36वें अध्ययन की 50-51 वीं गाथा में सिद्धों के 14 प्रकारों का वर्णन किया गया है।

सिद्धों के प्रकार, गुण एवं स्वरूप

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सिद्धों के प्रकार, गुण एवं स्वरूप

सिद्धों के चौदह प्रकार

उत्तराध्ययन सूत्र के 36वें अध्ययन की 50-51 वीं गाथा में सिद्धों के 14 प्रकारों का वर्णन किया गया है।

(1) स्त्रीलिंग सिद्ध,
(2) पुरुषलिंग सिद्ध,
(3) नपुंसकलिंग सिद्ध,
(4) स्वलिंग सिद्ध
(5) अन्यलिंग सिद्ध,
(6) गृहस्थलिंग सिद्ध,
(7) जघन्य अवगाहना वाले सिद्ध,
(8) मध्यम अवगाहना वाले सिद्ध,
(9) उत्कृष्ट अवगाहना वाले सिद्ध,
(10) अधोलोक से होने वाले सिद्ध,
(11) मध्य लोक से होने वाले सिद्ध,
(12) उर्ध्व लोक से होने वाले सिद्ध,
(13) समुद्र से होने वाले सिद्ध तथा
(14) जलाशय से होने वाले सिद्ध।

सिद्धों के आठ गुण एवं स्वरूप

(1) पाँच प्रकार के ज्ञानावरणीय कर्म का क्षय होने से अनन्त केवलज्ञान गुण प्रकट हुआ, जिससे सिद्ध भगवान सभी द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव को जानते हैं।
(2) नौ प्रकार के दर्शनावरणीय कर्म का क्षय होने से अनन्त केवल दर्शन गुण प्रकट हुआ, जिससे सभी द्रव्य आदि देखने लगे (सामान्य रूप जानने लगे)।
(3) दोनों प्रकार का वेदनीय कर्म नष्ट हो जाने से अव्याबाध सखी (व्याधि-वेदना से रहित) हो गए।
(4) दो प्रकार का मोहनीय कर्म नष्ट हो जाने से क्षायिक समकित को प्राप्त (गुरुता और लघुता से रहित) हुए।
(5) चारों प्रकार का आयु कर्म क्षय हो जाने से अटल अवगाहना गुण को प्राप्त हो गए।
(6) दोनों प्रकार का नाम कर्म क्षीण हो जाने से अमूर्तिक हुए।
(7) दोनों प्रकार का गोत्र कर्म नष्ट हो जाने से अगुरुलघु (गुरुता और लघुता से रहित) गुण को प्राप्त हुए।
(8) पाँच प्रकार का अन्तराय कर्म क्षीण हो जाने से अनन्त आत्म सामर्थ्यवान हुए।

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