सामायिक प्रारम्भ कैसे?
संत-सती विराज रहे हों तो उनकी तरफ मुख करके सामायिक की विधि प्रारम्भ की जाये। यदि कोई भी न हो तो पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके विधि प्रारम्भ करना चाहिये।
पूर्व दिशा प्रगति की द्योतक है तो उत्तर दिशा ज्ञान में स्थिरता, दृढ़ता की प्रतीक है। जैन दृष्टि से पूर्व-उत्तर के मध्य ईशान कोण में स्थित महाविदेह क्षेत्र में तीर्थङ्करों का विचरण चलता रहता है। वह क्षेत्र कभी-भी तीर्थङ्करों से रिक्त नहीं होता है । ऐसी स्थिति में उधर तीर्थङ्करों के पवित्रतम तन-मन-वचन से आने वाली ऊर्जा का आकर्षण साधक की आत्मा को पवित्र बनाता है।
अत: सामायिक में मुख उत्तर या पूर्व की ओर अथवा ईशान कोण में अपेक्षित है। जैन शास्त्रों में दीक्षा, प्रवचन, अध्ययन-अध्यापन आदि कार्यों में भी पूर्व-उत्तर दिशा को प्राथमिकता दी गई है। अत: सामायिक करते वक्त इनमें से किसी एक दिशा की ओर मुख करके बैठना चाहिए।
पुस्तक सामायिक दर्शन (सम्यकज्ञान प्रचारक मंडल) से साभार