मृगावती साध्वी और आर्या चंदनबाला को केवलज्ञान प्राप्ति

मृगावती साध्वी और आर्या चंदनबाला को केवलज्ञान प्राप्ति

मृगावती साध्वी और आर्या चंदनबाला को केवलज्ञान प्राप्ति

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मृगावती साध्वी और आर्या चंदनबाला को केवलज्ञान प्राप्ति

एक बार साध्वी मृगावती जी भगवान महावीर के समवशरण में साध्वी श्रेष्ठा चंदनबाला जी आदि साध्वियों के साथ बैठी थीं। सूर्य-चन्द्र दोनों के प्रभु-दर्शनार्थ आने से सर्वत्र प्रकाश हो रहा था। अन्य साध्वियाँ तो यथासमय अपने स्थान पर चली गई, किन्तु मृगावती जी को प्रकाश होने से समय का ध्यान नहीं रहा। सूर्य-चन्द्र के चले जाने पर अचानक अँधेरा छाया तो उन्हें भान हुआ। वे अपने स्थान पर शीघ्र पहुँचीं। आर्या श्रेष्ठा चंदनबाला जी ने मृगावती जी की इस अक्षम्य भूल के लिए उपालम्भ किया। मृगावती जी ने अपनी भूल के लिए चंदनबाला जी से क्षमायाचना की। चंदनबाला जी सो गई। मगर मृगावती जी मन ही मन अपनी भूल के लिए पश्चात्ताप करने लगीं। आत्मालोचन करते-करते स्वभाव-रमणता का वेग इतना बढ़ा कि सहसा क्षपकश्रेणी पर आरूढ़ होकर केवलज्ञान प्राप्त कर लिया। तभी मृगावती जी ने केवलज्ञान के प्रकाश में देखा कि महासती चन्दनबाला के हाथ के पास से एक काला साँप जा रहा था। अत: तत्काल उनका हाथ ऊपर कर दिया। हाथ उठाने से चंदनबाला जी की नींद खुली। जगाने का कारण पूछा तो मृगावती ने साँप वाली बात कही। चंदनबाला ने पूछा - 'इतनी अँधेरी रात में आपको साँप कैसे दिखाई दिया ? क्या कोई विशिष्ट ज्ञान हुआ है ?' मृगावती जी ने कहा-'आपकी कृपा का ही सारा फल है।' चंदनबाला ने अपने आप को संभाला, सोचा-मैंने केवली की आशातना की। फिर भी मृगावती जी ने कितनी समता और शांति का परिचय दिया। यों अन्तर्मुखी होकर आत्म-स्वभाव का चिन्तन करते-करते चंदनबाला जी को भी केवलज्ञान प्राप्त हो गया। तत्पश्चात् सिद्ध गति को प्राप्त हुई।

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