पच्चीस बोल-तेईसवें बोले साधुजी के पाँच महाव्रत
तेईसवें बोले साधुजी के पाँच महाव्रत - 1. अहिंसा महाव्रत, 2. सत्य महाव्रत, 3. अचौर्य महाव्रत, 4. बहाचर्य महाव्रत और 5. अपरिग्रह महाव्रत।
महाव्रत - हिंसादि सावध प्रवृत्तियों का तीन करण तीन योग से त्याग करना 'महाव्रत' कहलाता है। सर्व विरति अर्थात् सम्पूर्ण रीति से हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह का त्याग करना 'महाव्रत' कहलाता है।
1. पहले अहिंसा महाव्रत में साधुजी महाराज, त्रस एवं स्थावर सभी प्रकार के जीवों की हिंसा करे नहीं, करावें नहीं और करते हुए को भला जाने नहीं, मन-वचन-काया से। तीन करण और तीन योग से किसी भी प्राणी की जीवन पर्यन्त हिंसा नहीं करते। सभी प्राणियों के प्रति दया व करूणा का भाव रखाना भी अहिंसा महाव्रत का अनिवार्य अंग है।
2. दूसरे सत्य महाव्रत में साधुजी महाराज, सर्वथा प्रकार से असत्य वचन (झूठ) बोले नहीं, बोलावे नहीं बोलते हुए को भला जाने नहीं, मन-वचन-काया से। अर्थात-तीन करण तीन योग से जीवन पर्यन्त असत्य का त्याग कर सत्य महाव्रत को ग्रहण किया जाता है।
3. तीसरे अचौर्य महाव्रत में साधुजी महाराज, सर्वथा प्रकार से चोरी का त्याग करे तीन करण तीन योग से जीवन पर्यन्त के लिए। दूसरे शब्दों में ग्राम, नगर या जंगल में छोटी, बड़ी, अल्प कीमत अथवा अधिक कीमत की, सचित्त, अचित्त वस्तु की चोरी करे नहीं, करावे नहीं, करते हुए को भला जाने नहीं, मन-वचन-काया से जीवन पर्यन्त। साधुजी महाराज को एक तिनका भी बिना आज्ञा के ग्रहण करना नहीं कल्पता।
4. चौथे ब्रह्मचर्य महाव्रत में साधुजी महाराज, सर्वथा प्रकार से मैथुन सेवन करे नहीं, करावे नहीं, करते हुए को भला जाने नहीं, मन-वचन-काया से जीवन पर्यन्त । इस प्रकार तीन करण, तीन योग से सम्पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना, ब्रह्मचर्य महाव्रत कहलाता है। साधुजी स्त्री जाति का स्पर्श नहीं करते, उनके श्रृंगार की कथा नहीं करते और न ही विकार दृष्टि से देखते हैं।
5. पाँचवें महाव्रत में साधुजी महाराज किसी भी प्रकार का परिग्रह रखे नहीं, रखावे नहीं और रखाते हुए को भला जाने नहीं, मन-वचन-काया से जीवन पर्यन्त। इस महावत में अल्प-बहुत, छोटा-बड़ा, सचित्त-अचित्त किसी भी प्रकार का परिग्रह रखने का तीन करण, तीन योग से त्याग किया जाता है। संयम की रक्षा एवं पालना हेतु वस्त्र, पात्र, कम्बल, रजोहरण स्वाध्याय हेतु पुस्तकें आदि जो सामग्री रखी जाती हैं, उन पर भी आसक्ति नहीं रखते।