पच्चीस बोल - तीसरे बोले काय छह
तीसरे बोले काय छह - 1. पृथ्वीकाय, 2. अपकाय, 3. तैजसकाय, 4. वायुकाय, 5. वनस्पतिकाय, 6.
त्रसकाय
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आधार-ठाणांग सूत्र, ठाणा 6, सूत्र 480, दशवै.अ.4
काय-शरीर के आधार पर जीवों के बनाये हुए समूह को 'काय' कहते हैं। विभिन्न प्रकार के पुद्गलो से बने शरीरों के द्वारा जीव के जो विभाग होते हैं उन्हें 'काय' कहते हैं। काय सब जीवों की आधार है, वह छः प्रकार की होती हैं
1. पृथ्वीकाय- पृथ्वीरूप ही जिन जीवों का शरीर है, उनकी काय को 'पृथ्वीकाय' कहते हैं। जैसे-सोना, चांदी, शीशा, लोहा, ताम्बा, कोयला, कंकर, पत्थर आदि।
2. अप्काय- पानीरूप ही जिन जीवों का शरीर है, उनकी काय को अपकाय' कहते हैं। जैसे- कुएँ, तालाब, बावड़ी, नदी, नलकूप, ओस, बरसात आदि का पानी।
3. तैजसकाय- अग्निरूप ही जिन जीवों का शरीर है, उनकी काय को 'तेउकाय' कहते हैं। जैसे- विद्युत, सेल, चूल्हे आदि की अग्नि।
4. वायुकाय- वायुरूप ही जिन जीवों का शरीर है, उनकी काय को 'वायुकाय' कहते हैं। जैसे- सभी प्रकार की हवा।
5. वनस्पतिकाय- वनस्पतिरूप ही जिन जीवों का शरीर है, उनकी काय का 'वनस्पतिकाय' कहते हैं। जैसेलीलोती, लीलन, फूलण आदि।
6. त्रसकाय- हलन-चलन करने वाले जीवों के शरीर को 'त्रसकाय' कहते हैं। अथवा सुख पाने व दुःख से बचने के लिए जो विशेष प्रयत्न कर सके, उन्हें भी त्रस कहते हैं।
पृथ्वीकाय आदि की गणना जीवों के आधार पर की जाती है। यदि उनमें जीव नहीं हो अर्थात् यदि पृथ्वी आदि अचित्त हो जाय तो उन्हें सम्बन्धित काय में सम्मिलित नहीं किया जाता है।