पच्चीस बोल - छठे बोले प्राण दस
6) छठे बोले प्राण दस - 1. श्रोत्रेन्द्रिय-बलप्राण 2. चक्षुरिन्द्रिय-बलप्राण, 3. घ्राणेन्द्रिय-बलप्राण, 4. रसनेन्द्रिय-बलप्राण, 5.स्पर्शनेन्द्रिय- बलप्राण, 6. मनोबलप्राण 7. वचन-बलप्राण, 8. काय-बलप्राण, 9. श्वासोच्छ्चास-बलप्राण, 10. आयुष्य-बलप्राण।
आधार-स्थानांग सूत्र स्थान दस की टीका।
प्राण - जिसके द्वारा शरीरधारी जीवन धारण करे अथवा जिनके सहारे जीव जीवित रहे उसे, 'प्राण' कहते हैं अथवा जीवन जीने की शक्ति विशेष को 'प्राण' कहते हैं।
ये प्राण दस प्रकार के हैं
1. श्रोत्रेन्द्रिय-बलप्राण- कानों के द्वारा शब्दों को ग्रहण करने की अथवा सुनने की शक्ति विशेष को 'श्रोत्रेन्द्रिय-बलप्राण' कहते हैं।
2. चक्षुरिन्द्रिय-बलप्राण - आँखों के द्वारा देखने की शक्ति विशेष को "चक्षुरिन्द्रिय-बलप्राण" कहते हैं।
3. घ्राणेन्द्रिय-बलप्राण - नासिका के द्वारा गंध ग्रहण करने की शक्ति विशेष को 'घ्राणेन्द्रिय-बलप्राण' कहते हैं।
4. रसनेन्द्रिय-बलप्राण - रसना के द्वारा खट्टा, मीठा आदि स्वाद को ग्रहण करने की शक्ति विशेष को 'रसनेन्द्रिय-बलप्राण' कहते हैं।
5. स्पर्शनेन्द्रिय-बलप्राण- पदार्श में रहे हुए ठंडे, गर्म आदि आठ प्रकार के स्पर्शों को ग्रहण करने की शक्ति विशेष को स्पर्शनेन्द्रिय-बलप्राण' कहते हैं।
6. मनोबलप्राण - द्रव्य मन की सहायता से किसी भी प्रकार का चिन्तन-मनन करने की शक्ति विशेष को 'मनोबलप्राण' कहते हैं।
7. वचन-बलप्राण - भाषा वर्गणा के पुद्गलों की सहायता से बचन बोलने की शक्ति विशेष को 'वचन-बलप्राण' कहते हैं।
8. काय-बलप्राण - औदारिक, वैक्रिय आदि शरीर के माध्यम से चलने-फिरने, उठने-बैठने की शक्ति विशेष को काय-बलप्राण कहते हैं।
9. श्वासोच्छवास-बलप्राण - श्वासोच्छवास वर्गणा के पुद्गलों की सहायता से श्वास लेने और श्वास छोड़ने की शक्ति विशेष को श्वासोच्छ्वास बलप्राण कहते हैं।
10. आयुष्य-बलप्राण - एक निश्चित समय तक निश्चित भव में जीवित रहने की शक्ति विशेष को 'आयुष्य बलप्राण' कहते हैं।