पच्चीस बोल-चौबीसवें बोले भंग 49
चौबीसवें बोले भंग 49 (ऊनपचास)
भंग-विकल्प रचना को भंग' कहते हैं। अथवा कोई भी व्रत-नियम, त्याग-प्रत्याख्यान जितने प्रकार के करण-योगों से ग्रहण किया जा सकता है, उन प्रकारों को भंग कहते हैं। इसमें यह बतलाया गया है कि किसी भी व्रत-नियम को श्रावक-श्राविकाएं कितनी तरह से धारण कर सकते हैं। ये भंग तीन करण, तीन योग के आधार पर बनाये गये हैं। करण का अर्थ है - किस दोष का सेवन स्वयं नहीं करना, दूसरों से नहीं कराना और करने वाले का अनुमोदन भी नहीं करना। योग का अर्थ है- मन से वचन से काया से दोष का सेवन नहीं करना। इन करण और योगों के आधार पर बनने वाले 49 भंग इस प्रकार हैं-
नौ अंक - 11, 12, 13, 21, 22, 23, 31, 32, 33 इसमें प्रथम अंक 'करण' का दूसरा अंक योग का सूचक है।
(1 से 9) अंक 11 के भंग नौ । एक करण और एक योग से कहना - 1. करूं नहीं - मनसा, 2. करूं नहीं - वयसा, 3. करूँ नहीं - कायसा, 4. कराऊँ नहीं - मनसा, 5. कराऊँ नहीं - वयसा, 6. कराऊ नहीं - कायसा, 7. अनुमोदूं नहीं - मनसा, 8. अनुमोदूं नहीं - वयसा, 9. अनुमोदूं नहीं - कायसा।
(10 से 18) अंक 12 के भंग नौ। एक करण और दो योग से कहना - 10. करूं नहीं-मनसा वयसा, 11. करूं नहीं - मनसा कायसा, 12. करूँ नहीं - वयसा कायसा, 13. कराऊँ नहीं - मनसा वयसा, 14. कराऊँ नहीं - मनसा कायसा, 15. कराऊँ नहीं - वयसा कायसा, 16. अनुमोदूँ नहीं - मनसा वयसा, 17. अनुमोदूं नहीं - मनसा कायसा, 18. अनुमोदूं नहीं - वयसा कायसा।
(19 से 21) अंक 13 के भंग तीन । एक करण और तीन योग से कहना - 19. करूँ नहीं - मनसा वयसा कायसा, 20. कराऊ नहीं - मनसा वयसा कायसा, 21. अनुमोदूं नहीं - मनसा वयसा कायसा।
(22 से 30) अंक 21 के भंग नौ। दो करण और एक योग से कहना - 22. करू नहीं, कराऊँ नहीं - मनसा, 23. करू नहीं, कराऊँ नहीं - वयसा, 24. करूं नहीं, कराऊँ नहीं - कायसा, 25. करूं नहीं, अनुमोदूं नहीं - मनसा, 26. कराऊँ नहीं, अनुमोदूँ नहीं - वयसा, 27. करूँ नहीं, अनुमोदूँ नहीं - कायसा, 28. कराऊँ नहीं, अनुमोदूं नहीं - मनसा, 29, कराऊँ नहीं, अनुमोदूं नहीं - वयसा, 30. कराऊँ नहीं, अनुमोदूं नहीं - कायसा।
(31 से 39) अंक 22 के भंग नौ। दो करण और दो योग से कहना - 31. करूं नहीं, कराऊँ नहीं - मनसा वयसा, 32. करूं नहीं, कराऊँ नहीं - मनसा कायसा, 33. करूं नहीं, कराऊँ नहीं - वयसा कायसा, 34. करूं नहीं, अनुमोदूं नहीं - मनसा वयसा, 35. करूं नहीं, अनुमोदूँ नहीं - मनसा कायसा, 36. करूं नहीं, अनुमोदूँ नहीं - वयसा कायसा, 37. कराऊँ नहीं, अनुमोदूँ नहीं - मनसा वयसा, 38. कराऊँ नहीं, अनुमोदूँ नहीं - मनसा कायसा, 39. कराऊँ नहीं, अनुमोदूं नहीं - वयसा कायसा।
(40 से 42) अंक 23 के भंग तीन। दो करण और तीन योग से कहना - 40. करूं नहीं, कराऊँ नहीं - मनसा वयसा कायसा, 41. करूं नहीं, अनुमोदूँ नहीं - मनसा वयसा कायसा, 42. कराऊ, नहीं अनुमोदूं नहीं - मनसा वयसा कायसा।
(43 से 45) अंक 31 के भंग तीन। तीन करण और एक योग से कहना - 43, करूँ नहीं, कराऊँ नहीं, अनुमोदूं नहीं - मनसा, 44. करूं नहीं, कराऊँ नहीं, अनुमोदूँ नहीं - वयसा, 45. करूँ नहीं, कराऊँ नहीं, अनुमोदूं नहीं - कायसा।
(46 से 48) अंक 32 के भंग तीन। तीन करण और दो योग से कहना - 46, करूँ नहीं, कराऊँ नहीं, अनुमोदूं नहीं - मनसा वयसा, 47. करूँ नहीं, कराऊँ नहीं, अनुमोदूं नहीं - मनसा कायसा, 48. करूं नहीं, कराऊँ नहीं, अनुमोदूं नहीं - वयसा कायसा।
(49) अंक 33 का भंग एक। तीन करण और तीन योग से कहना - 49. करू नहीं, कराऊँ नहीं, अनुमोदूं नहीं - मनसा वयसा कायसा।
आधार- भगवती सूत्र शतक-8, उद्देशक-5
इन 49 भंगों में से तीसरा भंग- करू नहीं - कायसा से प्रायः संवर व चौथा अणुव्रत ग्रहण किया जाता है। 19 वाँ भंग-करू नहीं - मनसा, वयसा, कायसा से पाँचवाँ, छट्ठा, सातवाँ व 10 वाँ व्रत ग्रहण किया जाता है। 40 वाँ भंग-करू नहीं, कराऊँ नहीं-मनसा, वयसा, कायसा से दया, सामायिक, पौषध व्रत ग्रहण किये जाते हैं। साथ ही 1, 2, 3, 4, 8, 9, 10 और 11 वाँ व्रत भी इसी भंग से ग्रहण किये जाते हैं।
उनपचासवाँ भंग - करूँ नहीं, कराऊँ नहीं, अनुमोदूँ नहीं - मनसा, वयसा, कायसा से संलेखना ग्रहण की जाती है तथा प्रतिमाधारी श्रावक भी इसी भंग से व्रतों का पालन करते हैं।
श्रावक-श्राविकाओं में उक्त सभी 49 भंग पाये जा सकते हैं। श्रावक-श्राविकाएं अपनी शक्ति एवं योग्यता के अनुसार किसी भी भंग से व्रत-नियम-त्याग-प्रत्याख्यान अवश्यमेव धारण एवं पालन करें।