पच्चीस बोल-चौथे बोले इन्द्रिय पाँच

शरीर के जिन अवयवों से शब्द, रूप, गंधा, रस, स्पर्श आदि का ज्ञान होता हो, उसे 'इन्द्रिय' कहते हैं। संसारी जीवों के ज्ञान प्राप्ति के साधन को 'इन्द्रिय कहते हैं। जीव 'इन्द्र' कहलाता है अतः इन्द्र के चिह्न को भी 'इन्द्रिय' कहते हैं।

पच्चीस बोल-चौथे बोले इन्द्रिय पाँच

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पच्चीस बोल - चौथे बोले इन्द्रिय पाँच

चौथे बोले इन्द्रिय पाँच - 1. श्रोरेन्द्रिय, 2. चक्षुरिन्द्रिय, 3. घ्राणेन्द्रिय, 4. रसनेन्द्रिय, 5. स्पर्शनेन्द्रिय।

इन्द्रिय - शरीर के जिन अवयवों से शब्द, रूप, गंधा, रस, स्पर्श आदि का ज्ञान होता हो, उसे 'इन्द्रिय' कहते हैं। संसारी जीवों के ज्ञान प्राप्ति के साधन को 'इन्द्रिय कहते हैं। जीव 'इन्द्र' कहलाता है अतः इन्द्र के चिह्न को भी 'इन्द्रिय' कहते हैं।

इन्द्रियाँ पाँच हैं

1. श्रोत्रेन्द्रिय - जीव जिसके द्वारा जीव, अजीव और मिश्र शब्दों को ग्रहण करके अथवा सुनकर के ज्ञान प्राप्त करता है, उसे श्रोत्रेन्द्रिय' कहते हैं।
2. चक्षुरिन्द्रिय - जीव जिसके द्वारा रूप अर्थात्-काला, नीला, लाल, पीला और सफेद वर्ण को ग्रहण कर ज्ञान प्राप्त करता है, उसे 'चक्षुरिन्द्रिय' कहते हैं।
3. घ्राणेन्द्रिय - जीव जिसके द्वारा सुगन्धव दुर्गन्ध को ग्रहण कर ज्ञान प्राप्त करता है, उसे 'घ्राणेन्द्रिय' कहते हैं।
4. रसनेन्द्रिय- जीव जिसके द्वारा तीखा, कड़वा, कषैला, खट्टा और मीठा, इन पाँच प्रकार के रस को ग्रहण करता है, उसे 'रसनेन्द्रिय' कहते हैं।
5. स्पर्शनेन्द्रिय - जीव जिसके द्वारा खुरदरा, कोमल, हल्का, भारी, ठण्डा, गर्म और लुखा, चिकना इन आठ प्रकार के स्पर्श को ग्रहण करता है, उसे 'स्पर्शनेन्द्रिय कहते हैं।

एकेन्द्रिय में एक- स्पर्शनेन्द्रिय, बेइन्द्रिय में दो- स्पर्शन और रसना, तेइन्द्रिय में तीन- घ्राणेन्द्रिय बड़ी, चडरिन्द्रिय में चार-चक्षु इन्द्रिय के मिलाने पर व पंचेन्द्रिय में समस्त पाँचों इन्द्रियाँ होती हैं। संसारस्थ जीवों में ऐसा कोई भी प्राणी नहीं है जो सर्वथा इन्द्रियों से रहित हो। एकेन्द्रिय जीवों का आहार, श्वास ग्रहण आदि क्रियाएँ स्पर्शनन्द्रिय से ही होती हैं।

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