पच्चीस बोल-ईक्कीसवें बोले राशि दो
ईक्कीसवें बोले राशि दो - 1. जीव राशि 2. अजीव राशि।
आधार-ठाणांग 2, समवा. 2, उत्तरा. अ. 36
जीव राशि - जीवों के समूह को 'जीव राशि' कहते हैं। जीव से तात्पर्य ऐसे पदार्थ से है, जिसमें उपयोग का गुण विद्यमान हो अर्थात् जानने, देखाने एवं अनुभव करने का गुण सदैव पाया जाता हो, जो सचेतन हो।
अजीव राशि - अजीवों के समूह को अजीव राशि कहते हैं। जीव राशि के 563 भेद तथा अजीव राशि के 560 भेद बतलाये गये हैं।
१. जीव राशि के 563 भेद
नारकी के 14 भेद - सात नारकी के अपर्याप्त और पर्याप्त।
तिर्यंच के 48 भेद - पृथ्वी, अप, तैजस और वायु इन चार प्रकार के स्थावर जीवों के प्रत्येक के सूक्ष्म और बादर तथा अपर्याप्त और पर्याप्त ऐसे चार भेदों से कुल 16 भेद हुए। वनस्पतिकाय के सूक्ष्म, साधारण और प्रत्येक, इन तीन के अपर्याप्त और पर्याप्त, ये 6 भेद हुए। इस प्रकार एकेन्द्रिय के कुल 22 भेद हुए।
बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय और चउरिन्द्रिय, इन तीन विकलेन्द्रिय के अपर्याप्त और पर्याप्त, ऐसे 6 भेद हुए।
तिर्यंच पंचेन्द्रिय पाँच प्रकार के हैं- 1. जलचर, 2. स्थलचर, 3. खेचर, 4. उरपरिसर्प और 5. भुजपरिसर्प। ये पाँच ही असंज्ञी और पाँच संज्ञी। ये 10 भेद हुए और इनके अपर्याप्त और पर्याप्त ऐसे 20 भेद हुए।
मनुष्य के 303 भेद - कर्मभूमिज मनुष्य के 15 भेद हैं। यथा-5 भरत, 5 ऐरावत और 5 महाविदेह में उत्पन्न मनुष्यों के 15 भेद। अकर्मभूमिज (भोग-भूमिज) मनुष्य के 30 भेद हैं। यथा - 5 देवकुरू, 5 उत्तरकुरू, 5 हरिवास, 5 रम्यक्वास , 5 हैमवत और 5 ऐरण्यवत, इन क्षेत्रों में उत्पन्न मनुष्यों के 30 भेद।
56 अन्तरद्वीपों में उत्पन्न होने वाले मनुष्यों के 56 भेद।
ये सभी मिलाकर गर्भज-मनुष्य के 101(15+30+56) भेद होते हैं। अपर्याप्त और पर्याप्त के भेद से 202 भेद होते हैं और इन 101 गर्भज मनुष्यों की अशुचि में उत्पन्न सम्मूर्छिम मनुष्य (अपर्याप्त) के 101 भेद, इस प्रकार कुल मिलाकर मनुष्य के 303 भेद होते हैं।
देव के 198 भेद-10 भवनपति-असुरकुमारादि।
15 परमाधार्मिक 1. अम्ब, 2. अम्बरीष, 3. श्याम, 4. सबल, 5. रौद्र, 6. उपरौद्र, 7. काल, 8. महाकाल, 9. असिपत्र, 10, धनुष, 11, कुंभ, 12. वालुका, 13. वैतरणी, 14. खरस्वर और 15. महाघोष। इनकी स्थिति भवनपति देवों के साथ होने से इन्हें भी भवनपति कहते हैं।
16 वाणव्यन्तर - पिशाचादि (पिशाच, भूत, यक्ष, राक्षस, किन्नर, किंपुरुष, महोरग, गन्धर्व) आणपन्ने आदि आठ (आणपन्ने, पाणपन्ने, इसिवाई, भूयवाई, कंदे, महाकंदे, कुहाण्डे, पयंगदेव) 10 जम्भक- 1, अन्न जृम्भक, 2. पान जृम्भक, 3. वस्त्र जृम्भक 4. लयण जृम्भक, 5. शयन जृम्भक, 6. पुष्प जृम्भक, 7. फल जृम्भक, 8. पुष्पफल जृम्भक, 9. विद्या जृम्भक, 10. अव्यक्त जृम्भक। इनकी स्थिति वाणव्यन्तर के साथ होने से इन्हें बाणव्यन्तर भी कहते हैं।
10 ज्योतिषी - 1. चन्द्र, 2. सूर्य, 3. ग्रह, 4. नक्षत्र और 5. तारा। ये 5 चर और 5 अचर। कुल 10 भेद।
38 वैमानिक - 12 देवलोक - 1. सौधर्म, 2. ईशान, 3. सनत्कुमार, 4. माहेन्द्र, 5. ब्रह्मलोक, 6. लान्तक, 7. महाशुक्र, 8. सहस्त्रार, 9. आणत, 10. प्राणत, 11. आरण और 12. अच्युत।
3 किल्विषिक - 1. त्रिपल्योपमिक, 2. त्रिसागरिक और 3. त्रयोदशसागरिक
9 लोकान्तिक - 1. सारस्वत, 2. आदित्य, 3. वहि, 4. वरूण, 5. गर्दतोय, 6. तुषित, 7. अव्याबाध, 8. आग्नेय और 9. अरिष्ट।
9 ग्रैवेयक - 1, भद्र, 2. सुभद्र, 3. सुजात, 4. सुमनस, 5. सुदर्शन, 6. प्रियदर्शन, 7. आमोह, 8. सुप्रतिबद्ध और 9. यशोधर।
5 अनत्तर वैमानिक - 1.विजय, 2. वैजयन्त, 3. जयन्त. 4.अपराजित और 5. सर्वार्थसिद्ध।
ये कुल मिलाकर 99 (10+15+16+10+10+38) भेद हुए। इनके अपर्याप्त और पर्याप्त के भेद से देवों के 198 भेद होते हैं।
२. अजीव राशि के 560 भेद
अरूपी अजीव के 30 और रूपी अजीव के 530, इस तरह 560 भेद हैं।
अरूपी अजीव के 30 भेद - धर्मास्तिकाय के तीन भेद - स्कन्धा (सम्पूर्ण वस्तु) देश (दो तीन आदि कल्पित भाग), प्रदेश (स्कन्ध से संलग्न सूक्ष्म अंश जिसका दूसरा भाग नहीं हो सके) अधर्मास्तिकाय के तीन भेद - स्कन्ध देश और प्रदेश। आकाशास्तिकाय के तीन भेद - स्कन्ध, देश और प्रदेश ये 9 तथा दसवाँ कालद्रव्य, इस प्रकार 10 भेद हुए।
धर्मास्तिकाय के पाँच भेद - 1. द्रव्य, 2. क्षेत्र, 3. काल, 4. भाव और 5. गुण। अधर्मास्तिकाय के पाँच भेद 1. द्रव्य, 2. क्षेत्र, 3. काल, 4. भाव और 5. गुण। आकाशास्तिकाय के पाँच भेद - 1. द्रव्य, 2. क्षेत्र, 3. काल, 4. भाव और गुण। कालद्रव्य के 5 भेद- 1. द्रव्य, 2. क्षेत्र, 3. काल, 4. भाव और 5. गुण। ये 20 और ऊपर के 10, ऐसे कुल 30 भेद हुए।
रूपी अजीव के 530 भेद
पाँच वर्ण के 100 भेद - काला, नीला, लाल, पीला और श्वेत इन पाँच वर्णों में प्रत्येक के 2 गंध, 5 रस, 8 स्पर्श और 5 संस्थान, इन 20 भेदों से गुणा करने पर 20x5-100 भेद हुए।
दो गंध के 46 भेद - सुगंध और दुर्गन्ध इन दो गन्धों में प्रत्येक के 5 वर्ण, 5 रस, 8 स्पर्श और 5 संस्थान, इन 23 भेदों से गुणा करने पर 23X2=46 भेद हुए।
पाँच रस के 100 भेद - तीखा, कड़वा, कषैला, खट्टा और मीठा इन पाँच रसों में प्रत्येक के 5 वर्ण, 2 गंध, 8 स्पर्श और 5 संस्थान। इन 20 भेदों से गुणा करने पर 20x5-100 भेद हुए।
आठ स्पर्श के 184 भेद - कर्कश, मृदु, गुरु, लघु, शीत, उष्ण, स्निग्ध और रुक्ष इन आठ स्पर्श में प्रत्येक के 5 वर्ण, 2 गंध, 5 रस, 6 स्पर्श और 5 संस्थान। इन 23 भेदों से गुणा करने पर 23x8-184 भेद हुए।
पाँच संस्थान के 100 भेद - परिमण्डल - थाली अथवा चूड़ी के आकार का गोल। वृत्त-गेंद के आकार का गोल। त्रिभुज - सिंघाड़े अथवा तिपाये के समान। चौकोर - चौकी, पट्टी आदि के समान। आयत - रस्सी, डण्डे आदि के समान लम्बा। इन पाँच संस्थानों में प्रत्येक के 5 वर्ण, 2 गंध, 5 रस और 8 स्पर्श। इन 20 भेदों से गुणा करने पर 20x5-100 भेद हुए। ऐसे कुल (100+46+100+184+100) 530 भेद हुए।
जीव कभी भी अजीव नहीं बन सकता तथा अजीव कभी भी जीव नहीं हो सकता।