पच्चीस बोल-अठारहवें बोले दृष्टि तीन

दृष्टि- जीव की अन्तःकरण की प्रवृत्ति को दृष्टि' कहते हैं। देव, गुरु, धर्म एवं आत्म-स्वरूप सम्बन्धी जो यथार्थ, अयथार्थ अथवा मिश्रित श्रद्धान होता है, उसे भी दृष्टि कहते हैं। संसार में जितने भी जीव है, उनमें इनमें से एक न एक दृष्टि' अवश्य मिलती है।

पच्चीस बोल-अठारहवें बोले दृष्टि तीन

post

पच्चीस बोल - अठारहवें बोले दृष्टि तीन

अठारहवें बोले दृष्टि तीन - 1. सम्यग्दृष्टि, 2. मिथ्यादृष्टि और 3. सम्यक्-मिथ्या दृष्टि (मिश्रदृष्टि)
आधार-ठाणांग 3 सूत्र 148 पण्णवणा, पद 19

दृष्टि- जीव की अन्तःकरण की प्रवृत्ति को दृष्टि' कहते हैं। देव, गुरु, धर्म एवं आत्म-स्वरूप सम्बन्धी जो यथार्थ, अयथार्थ अथवा मिश्रित श्रद्धान होता है, उसे भी दृष्टि कहते हैं। संसार में जितने भी जीव है, उनमें इनमें से एक न एक दृष्टि' अवश्य मिलती है।

सम्यक दृष्टि - सम्यक् का तात्पर्य है सही, सच्ची अथवा यथार्थ। दृष्टि का तात्पर्य है देखना, अनुभूति करना, श्रद्धान करना। अर्थात् जीवादि नवतत्त्वों का एवं षटद्रव्यों का जैसा स्वरूप वीतराग भगवन्तों ने आगमवाणी में कथन किया है, उसे उसी रूप में श्रद्धान करना, मानना 'सम्यक दृष्टि' है। स्व और पर का भेद-विज्ञान होना अर्थात् आत्म-तत्व और जड़ तत्त्व दोनों भिन्न-भिन्न हैं, मेरी आत्मा अलग है, शरीर अलग है, ऐसी अनुभूति करते हुए आत्मपरक श्रद्धान होना सम्यक् दृष्टि है।

मिथ्या दृष्टि - जीवादि नवतत्त्वों के स्वरूप के बारे में वास्तविक श्रद्धान न होना, विपरीत अशवा अयथार्थ श्रद्धान होना मिथ्या दृष्टि है। देव, गुरु, धर्म और आत्म-स्वरूप के प्रति अयथार्थ श्रद्धान होना, आत्मा व शरीर को भिन्न नहीं समझकर एक ही रूप मान लेना और इन्द्रिय-विषयों के भोगों को ही जीवन का लक्ष्य बना लेना मिथ्या दृष्टि है। जीव के संसार परिभ्रमण का मूल कारण मिथ्या दृष्टि होना है।

मिश्र दृष्टि- पदार्थ के यथार्थ व अयथार्थ दोनों स्वरूप में अनिर्णय की स्थिति वाले 'मिश्र दृष्टि' कहलाते हैं। वीतराग और रागी का भेद नहीं कर पाते, मोक्ष मार्ग और संसार मार्ग की भिन्नता का भेद नहीं कर पाते, उन जीवों के सम्यक्त्व और मिथ्यात्व से युक्त तटस्थ परिणामों को 'मिश्र दृष्टि' कहते हैं। इस अवस्था में परिणामों में मिलता एवं चंचलता होने से न तो अगले भव की आयुष्य का बंध होता है और न ही जीव मृत्यु को प्राप्त होता है।

इन तीनों दृष्टियों में सम्यक् दृष्टि ज्ञेय एवं उपादेय है, जबकि मिथ्या एवं मिश्र दृष्टि ज्ञेय एवं हेय है।

You might also like!