नवकार मंत्र प्रश्नोत्तर

नवकार मंत्र प्रश्नोत्तर, Navkar Mantra Question Answer, नवकार मंत्र प्रश्न उत्तर

नवकार मंत्र प्रश्नोत्तर

post

प्रश्न : जैनधर्म का सबसे प्रसिद्ध मंत्र कौन सा है?
उत्तर : नमस्कार महामंत्र।

प्रश्न : नमस्कार महामंत्र को और किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर : नवकार मंत्र, णमोकार मंत्र, पंच परमेष्ठी।

प्रश्न : जैनधर्म का सबसे प्रचीन मंत्र कौन सा है?
उत्तर : नमस्कार महामंत्र। यह मंत्र अनादि काल से चला आ रहा है।

प्रश्न : नमस्कार महामंत्र में किस व्यक्ति को नमस्कार किया है?
उत्तर : नमस्कार महामंत्र में किसी व्यक्ति विशेष को नमस्कार नहीं किया गया है वरन् परम पावन सिद्ध आत्माओं और मुक्ति के साधकों को, महान आत्माओं को, नमस्कार किया है। पंच परमेष्ठी को नमस्कार किया है।

प्रश्न : नमस्कार महामंत्र में किसका समावेश है?
उत्तर : नमस्कार महामंत्र में पंच परमेष्टी का समावेश है। अरिहंत, सिद्ध, आचार्य उपाध्याय और साधु- इन पांचों को पंच परमेष्ठी कहते हैं।

प्रश्न : नमस्कार महामंत्र में कितने पद्य और अक्षर हैं?
उत्तर : पांच पद्य और पैतीस अक्षर। पूरे (वृहद्) महामंत्र में 9 पद और 68 अक्षर हैं।

प्रश्न : नमस्कार महामंत्र के किस पद में कितने कितने अक्षर हैं
उत्तर : पहले पद में 7,
दूसरे पद में 5,
तीसरे पद में 7,
चौथे पद में 7 और
पांचवें पद में 9 अक्षर हैं।

इस प्रकार नमस्कार महामंत्र में कुल 35 अक्षर हैं।

प्रश्न : नव पद किसे कहते हैं?
उत्तर : ऐसो पंचणमुक्कारो के चार पदों सहित सहित पूरे नमस्कार महामंत्र में नव पद हैं।

प्रश्न : नमस्कार महामंत्र में कितने अक्षर लघु, गुरु, हर्स्व और दीर्घ हैं?
उत्तर : णमो अरहंताणं में- ण, अ और र- 3
णमो सिद्धाणं में- ण - 1
णमो आयरियाणं में- ण, य और रि- 3
णमो उवज्झायाणं में - ण, उ - 2
णमो लोए सव्व साहूणं में- ण और व- 2
3+1+3+2+2=11 अक्षर लघु हैं।

नमस्कार महामंत्र के 35 में से उपर्युक्त 11 लघु अक्षरों को छोड़कर महामंत्र के 35 अक्षरों में शेष सभी 24 अक्षर गुरु हैं।

णमो अरहंताणं में- मो, हं और ता - 3
णमो सिद्धाणं में- मो और द्धा - 2
णमो आयरियाणं में- मो, आ और या - 3
णमो उवज्झायाणं में - मो, झा और या - 3
णमो लोए सव्व साहूणं में- मो, लो, सा और हू - 4
(3+2+3+3+4=)15 अक्षर दीर्घ हैं।

उपर्युक्त 15 दीर्घ अक्षरों को छोड़कर महामंत्र के 35 अक्षरों में शेष सभी 20 अक्षर हर्स्व हैं।


प्रश्न : नमस्कार महामंत्र में कितना ज्ञान समाया हुआ है?
उत्तर : जैन परम्परा के अनुसार नमस्कार महामंत्र में चौदह पूर्व का सार समाया हुआ है।

प्रश्न : "अ सि आ उ सा" मंत्र में किनको नमस्कार किया है?
उत्तर : यह नमस्कार महामंत्र का ही लघु रूप है और इसमें भी पंच परमेष्ठी को ही नमस्कार किया गया है।

प्रश्न : कौन-से परमेष्ठी कहां रहते हैं?
उत्तर : अरिहंत, आचार्य, उपाध्याय और साधु ये चार परमेष्ठी ढाई द्वीप की 170 कर्म भूमियों के आर्यखण्डों में विचरण करते हैं।
सिद्ध परमेष्ठी लोक के अग्र भाग पर सिद्ध शिला पर शाश्वत विराजमान रहते हैं।

प्रश्न : आप्त किसे कहते हैं?
उत्तर : वीतरागी, सर्वज्ञ और हितोपदेशी ये तीन गुण जिनमें होते हैं वे आप्त कहलाते हैं।

प्रश्न : नवकार मंत्र में अरिहंत देव को पहले नमस्कार क्यों किया जाता है?
उत्तर : अरिहंत देव व सिद्ध भगवान में बड़े सिद्ध भगवान है। नवकार मंत्र में अरिहंत देव को पहले नमस्कार इसलिए किया जाता है क्योकि सिद्ध भगवान कि पहचान कराने वाले अरिहंत ही है। अरिहंत मुनि जैसे होते है और सिद्ध भगवन निरंजन है व अशरीरी होने से निराकार है। महाविदेह क्षेत्र में २० अरिहंत देव है और वे साधू कि तरह अचित आहार करते है। अरिहंत देव काल करके मोक्ष में जाते है। इस भरत क्षेत्र के आखरी अरिहंत (तीर्थंकर) महावीर स्वामी अभी सिद्ध क्षेत्र में है।

प्रश्न : राग-द्वेष किसे कहते हैं?
उत्तर : अनुकल व्यक्ति, वस्तु अथवा परिस्थिति को पाकर प्रसन्न होना 'राग' कहलाता है, जबकि प्रतिकूल व्यक्ति, वस्तु, परिस्थिति को पाकर अप्रसन्न (नाराज) होना 'द्वेष' कहलाता है।

प्रश्न : मंत्र किसे कहते हैं?
उत्तर : जिसमें कम शब्दों में अधिक भाव और विचार हों और जो कार्यसिद्धि में सहायक हो, जिसके मनन से जीव को रक्षण प्राप्त हो, उसे मंत्र कहते हैं।

प्रश्न : नवकार मंत्र का क्या महत्त्व है?
उत्तर : नवकार मंत्र का अर्थ है- नमस्कार मंत्र। प्राकृत भाषा में नमस्कार को 'णमोक्कार' कहते हैं। इसमें पाँच पदों को नमन किया गया है। इनमें से दो देवपद (अरिहंत और सिद्ध) एवं शेष तीन गुरु पद (आचार्य, उपाध्याय एवं साधु) हैं। ये पाँचों पद अपने आराध्य या इष्ट होने के साथ हमेशा परम (श्रेष्ठ) भाव में स्थित रहते हैं, इसलिये इन्हें पंच परमेष्ठी भी कहा गया है। इस मंत्र के उच्चारण से पापों का नाश होता है। यह मंगलकारी है।

प्रश्न : नवकार मंत्र किस भाषा में है?
उत्तर : नवकार मंत्र प्राकृत (अर्धमागधी प्राकृत) भाषा में है।

प्रश्न : आचार्य किसे कहते हैं?
उत्तर : चतुर्विध संघ के वे श्रमण, जो संघ के नायक होते हैं और जो स्वयं पंचाचार का पालन करते हुए साधु-संघ में भी आचार पालन कराते हैं, उन्हें आचार्य कहते हैं। ये 36 गुणों के धारक होते हैं।

प्रश्न : उपाध्याय किसे कहते हैं?
उत्तर : वे श्रमण, जो स्वयं शास्त्रों का अध्ययन करते हैं और दूसरों को अध्ययन करवाते हैं, उन्हें उपाध्याय कहते हैं। ये 25 गुणों के धारक होते हैं।

प्रश्न : साधु किसे कहते हैं?
उत्तर : गृहस्थ धर्म का त्याग कर जो पाँच महाव्रत- 1. अहिंसा, 2. सत्य, 3. अचौर्य, 4. ब्रह्मचर्य और 5. अपरिग्रह को पालते हैं एवं शास्त्रों में बतलाये गये समस्त आचार सम्बन्धी नियमों का पालन करते हैं, उन्हें साधु कहते हैं। ये 27 गुणों के धारक होते हैं।

प्रश्न : पंच परमेष्ठी के कर्म कितने होते हैं?
उत्तर : अरिहंत के चार कर्म (नामकर्म, गौत्रकर्म, वेदनीय कर्म और आयुष्य कर्म)
सिद्ध के एक भी कर्म नहीं होता। जब सभी आठों कर्मों का क्षय हो जाता है तब सिद्ध बनते हैं।
आचार्य के आठ कर्म होते हैं।
उपाध्याय के आठ कर्म होते हैं।
साधु के आठ कर्म होते हैं।


प्रश्न : पंच परमेष्ठी के शरीर कितने होते है?
उत्तर : अरिहंत के 3 शरीर- औदारिक, तेजस् और कार्मण।
सिद्ध अशरीरी होते हैं, उनके शरीर नहीं होते।
आचार्य के छठे गुणस्थान में 5, आगे के (7 से 14 तक) शरीर तीन पाए जाते हैं।
उपाध्याय के छठे गुणस्थान में 5, आगे के (7 से 14 तक) शरीर तीन पाए जाते हैं।
साधु के छठे गुणस्थान में साधु के 5, साध्वी के 4 और आगे के (7 से 14 तक) साधु साध्वी के शरीर तीन पाए जाते हैं।

प्रश्न : पंच परमेष्ठी के गुणस्थान कौन से है?
उत्तर : अरिहंतों का गुणस्थान 13वां और 14वां होता है। अरिहंत 1. 2, 3, 5,11 इन पांच गुणस्थानों को छूते नहीं। सिद्धों का गुणस्थान नहीं होता।
आचार्यों का गुणस्थान 6 से 14 (अनेक जीवों की अपेक्षा से) होता है।
उपाध्यायों का गुणस्थान 6 से 14 (अनेक जीवों की अपेक्षा से) होता है।
साधु का गुणस्थान 6 से 14 (अनेक जीवों की अपेक्षा से) होता है।

प्रश्न : पंच परमेष्ठी के पर्याप्ति कितनी पाई जाती हैं?
उत्तर : अरिहंत के 13वें गुणस्थान की दृष्टि से 5 पर्याप्तियां (इन्द्रिय पर्याप्ति को छोड़कर) होती हैं और 14वेंगुणस्थान में मात्र 1 शरीर पर्याप्ति पाई जाती है।
सिद्धों के प्रथम समय में शरीर भी छूट जाता है इसलिए सिद्धों में कोई पर्याप्ति नहीं पाई जाती।
आचार्य के छहों पर्याप्ति पाई जाती हैं।
उपाध्याय के छहों पर्याप्ति पाई जाती हैं।
साधु के छहों पर्याप्ति पाई जाती हैं।

प्रश्न : पंच परमेष्ठी में प्राण कितने पाए जाते हैं?
उत्तर : अरिहंत में 13वें गुणस्थान की दृष्टि से 5 प्राण (5 इन्द्रिय प्राणों को छोड़कर) पाए जाते हैं और 14वें गुणस्थान में मात्र 1 आयुष्यबल प्राण।
सिद्धों के प्राण नहीं पाए जाते हैं क्योंकि वे अशरीरी हैं।
आचार्य के दसों प्राण पाए जाते हैं।
उपाध्याय के दसों प्राण पाए जाते हैं।
साधु के दसों प्राण पाए जाते हैं।

प्रश्न : पंच परमेष्ठी में योग कितने पाए जाते हैं?
उत्तर : अरिहंत के दो गुणस्थान होते हैं-13 और 14. 13वें गुणस्थान में 5 योग पाए जाते हैं और 14वें गुणस्थान में एक भी योग नहीं।
सिद्ध में एक भी योग नहीं।
आचार्य में 7 योग पाए जाते हैं।
उपाध्याय में 7 योग पाए जाते हैं।
साधु में योग 7 पाए जाते हैं।

प्रश्न : पंच परमेष्ठी में उपयोग कितने पाए जाते हैं?
उत्तर : अरिहंतों में उपयोग 2 पाए जाते हैं- केवलज्ञान और केवलदर्शन।
सिद्ध में उपयोग 2 पाए जाते हैं - केवलज्ञान और केवलदर्शन।
आचार्य में उपयोग 7 पाए जाते हैं - 4 ज्ञान मति, श्रुत, मन:पर्यव और अवधि और 3 दर्शन. चक्षु, अचक्षु और अवधि ।
उपाध्याय में उपयोग 7 पाए जाते हैं - 4 ज्ञान मति, श्रुत, मन:पर्यव और अवधि और 3 दर्शन. चक्षु, अचक्षु और अवधि।
साधु में उपयोग 7 पाए जाते हैं - 4 ज्ञान मति, श्रुत, मन:पर्यव और अवधि और 3 दर्शन. चक्षु, अचक्षु और अवधि।

प्रश्न : पंच परमेष्ठी में आत्मा कितनी पाई जाती हैं?
उत्तर : अरिहंत के आत्मा 6 या 7 पाई जाती हैं।
सिद्ध के आत्मा 4 पाई जाती हैं?
आचार्य के आत्मा 8 पाई जाती हैं?
उपाध्याय के आत्मा 8 पाई जाती हैं?
साधु के आत्मा 8 पाई जाती हैं?

प्रश्न : अभवी जीव पंच परमेष्ठी के कितने पद प्राप्त कर सकते हैं?
उत्तर : अभवी जीव पंच परमेष्ठी का एक भी पद नहीं पा सकता। अभवी सम्यक्त्वी नहीं हो सकता और बिना सम्यक्त्व के चारित्र ग्रहण नहीं कर सकता। हां, व्यवहार में अभवी साधु वेश धारणकर उपाध्याय, आचार्य बन भी सकता है । ऐसा व्यक्ति भारी तपस्या कर काल पूरा करे तो नव ग्रेवेयक तक भी जा सकता है किन्तु न तो पांच अनुत्तर विमान में जा सकता है और न मोक्ष में ही जा सकता है।

प्रश्न : क्या कोई श्रावक अपने जीवन में अरिहंत पद पा सकता है?
उत्तर : नहीं, श्रावक उस जीवन में अरिहंत नहीं बन सकता। क्योंकि श्रावक का पांचवा गुणस्थान होता है और अरिहंत अपने जीवन में कभी पांचवा गुणस्थान स्पर्श नहीं करते। वे सीधे महाव्रत ही स्वीकार करते हैं। दीक्षा लेते ही सातवां गुणस्थान आता है। अंतर्मुहूर्त्त में छठे गुणस्थान में आते हैं।

प्रश्न : क्या कोई श्रावक अपने जीवन में सिद्ध पद पा सकता है?
उत्तर : सिद्ध पद साधु ही प्राप्त कर सकता है। यदि श्रावक आगे जाकर साधु बन जाए या उसमें माता मरूदेवा की तरह "भाव साधुपन" आ जाए तो आयुष्य पूर्ण कर सिद्ध पद पा सकता है।


प्रश्न : पंच परमेष्ठी की दृष्टि कौन सी होती है।
उत्तर : दृष्टि तीन प्रकार की होती है- सम्यग् दृष्टि, सम्यग्-मिथ्या दृष्टि और मिथ्या दृष्टि। पांचों ही परमेष्ठी की दृष्टि केवल सम्यक् दृष्टि होती है।

प्रश्न : पंच परमेष्ठी में वीर्य कौन सा पाया जाता है?
उत्तर : व्रतधारण की अवस्था को वीर्य कहते हैं। वीर्य तीन प्रकार का है- बाल वीर्य, बाल-पंडित वीर्य और पंडित वीर्य। पहले से चौथे गुणस्थान तक बाल वीर्य होता है। पांचवें में बाल-पंडित वीर्य और इसके ऊपर के गुणस्थानों में पंडित वीर्य होता है। सिद्धों के वीर्य नहीं होता। बाकी चारों ही परमेष्ठी में एक ही वीर्य- पंडित वीर्य पाया जाता है।

प्रश्न : अरिहंत किसे कहते हैं?
उत्तर : अरि - शत्रु, हंत - नाश करने वाले। अर्थात् जिन्होंने आन्तरिक शत्रुओं का नाश कर दिया है, उन्हें अरिहंत कहते हैं। काम, क्रोध, मद, लोभ, राग-द्वेष आदि आन्तरिक शत्रु कहे गये हैं। अन्दर विद्यमान आन्तरिक शत्रु ही बाहरी शत्रुओं का निर्माण करते हैं। जब आन्तरिक शत्रु नहीं होते हैं तो बाहर
में कोई भी शत्रु नहीं होता है। अरिहंत को जिन, वीतराग, सर्वज्ञ, तीर्थकर, अर्हन, अरहन्त, अरुहन्त, विहरमान आदि सार्थक नामों से पुकारा जाता है।

जो आत्माएं चार घाति कर्म (ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय एवं अन्तराय) का क्षयकर राग-द्वेष रूपी कर्म शत्रुओं का नाश कर केवलज्ञान प्राप्त कर लेते हैं और धर्म की प्ररूपणा करते हैं, चार तीर्थ की स्थापना करते हैं उन्हें अरिहंत कहते हैं। सभी केवलज्ञानी अरिहंत नहीं होते। तीर्थंकरों को अरिहंत कहते हैं। ये तीर्थंकर नाम कर्म के उपार्जन से होते हैं।

प्रश्न : केवलज्ञान किसे कहते हैं?
उत्तर : सम्पूर्ण ज्ञान को। केवलज्ञान से भूत, भविष्य, वर्तमान सब कुछ जाना जाता है। यह अनंत ज्ञान है, अबाध ज्ञान है। केवल ज्ञान आत्मा का एक मूल गुण है जो ज्ञानावरणीय कर्म के क्षय हो जाने प्रकट हो जाता है।

प्रश्न : अरिहंत को और किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर : उ. अरिहंत को अर्हत्, अरहंत, अरुहंत, तीर्थंकर, जिन, आदि नामों से जाना जाता है। सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, वीतराग, केवली शब्द अरहंत के लिए पर्याप्त नहीं हैं। ये शब्द सामान्य केवली के लिए काम में लेते हैं। वीतराग तो छद्मस्थ भी हो सकते हैं।

प्रश्न : अरहंत साकार है या निराकार?
उत्तर : साकार। अरिहंत साकार या सशरीर परमात्मा है। सिद्ध निराकार या अशरीरी परमात्मा है, क्योंकि समस्त कर्मों के क्षीण हो जाने पर शरीर का भी अस्तित्व नहीं रहता। अरिहंत ही निराकार परमात्मा का या सिद्धों का बोध कराते हैं।

प्रश्न : क्या वर्तमान में अरिहंत भगवान विद्यमान हैं?
उत्तर : हमारे भरत क्षेत्र में तो नहीं हैं किन्तु पांच महाविदेह क्षेत्र में सीमंधर स्वामी आदि 20 अरिहंत विद्यमान हैं उन्हें 20 विहरमान भी कहा जाता है।

प्रश्न : हमारे यहां अभी कौन से अरहंत का शासन (बरतारा) चल रहा है?
उत्तर : हमारे भरतक्षेत्र में अभी भगवान महावीर का शासन चल रहा है। इस क्षेत्र में इस अवसर्पणी काल में चौबीस तीर्थंकर हुए। पहले ऋषभ और अन्तिम महावीर स्वामी।

प्रश्न : कितने परमेष्ठी नींद लेते हैं?
उत्तर : तीन- आचार्य, उपाध्याय और साधु तीनों नींद लेते हैं किन्तु केवली हो जाने पर नींद नहीं लेते।
नींद दर्शनावरणीय कर्म के उदय से आती है। अत: केवली, अरिहंत और सिद्ध नींद नहीं लेते।

प्रश्न : कितने परमेष्ठी आहार करते हैं।
उत्तर : सिद्ध को छोड़कर चारों परमेष्ठी आहार करते हैं।

प्रश्न : कितने परमेष्ठी मनुष्य हैं और कितने देवता?
उत्तर : सिद्ध को छोड़कर चारों परमेष्ठी मनुष्य हैं। सिद्ध भगवान हैं। लौकिक देवता परमेष्ठी की श्रेणी में नहीं आते। अरहंत लोकोत्तर देव कहलाते हैं किन्तु होते वे भी मनुष्य ही हैं।




You might also like!