नमस्कार महामंगल सूत्र:

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नमस्कार महामंगल सूत्र: 


नमो अरिहंताणं।
नमो सिद्धाणं।
नमो आयरियाणं।
नमो उवज्झायाणं।
नमो लोए सव्वसाहूणं।
एसो पंच नमुक्कारो, सव्वपावप्पणासणो।
मंगलाणं च सव्वेसिं, पढमं हवइ मंगलं ।।


(१) अरिहन्तों को नमस्कार हो,
(२) सिद्धों को नमस्कार हो,
(३) आचार्यों को नमस्कार हो,
(४) उपाध्यायों को नमस्कार हो,
(५) लोक में विराजित सर्व साधुओं को नमस्कार हो।
इन पाँचों को किया हुआ नमस्कार, सब पापों का सर्वथा नाश करने वाला और सब मंगलों में प्रथम (मुख्य) मंगल है। 


महामन्त्र का विवेचन

इस मन्त्र को नवकार महामन्त्र भी कहते हैं । इनके पाँच पदों की छोटी-सी रूपरेखा निम्नांकित है.

(१) अरिहंत किसे कहते हैं? 

अज्ञान, निद्रा, मोह और अन्तराय, आत्मा के ये चारों घाती कर्म हैं। इन पर जिन्होंने विजय पाई है,वे हैं- जिन/अरिहंत। उनमें श्रेष्ठ है, है जिनेश्वर देवाधिदेव तीर्थंकर भगवान। जो साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका रूप चार तीर्थ की स्थापना करते हैं, उनको तीर्थंकर कहते हैं। ऐसे अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त चारित्र और अनन्त बल पुण्य के स्वामी, बारह गुणों के धारक अरिहंत भगवान होते हैं। जो हमारी श्रद्धा, भक्ति, उपासना और आराधना के परम इष्ट  (परमेश्वर) हैं। उन अरिहंत भगवन्तों को मेरा नमस्कार हो।

(२) सिद्ध किसे कहते हैं? 

ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय, मोहनीय, आयुष्य, नाम, गोत्र और अन्तराय, सांसारिक आत्मा इन आठ कर्मों से लिप्त है। इन पर जिन्होंने विजय पाई है और सिद्ध-बुद्ध निरंजन-निराकार स्वरूप बने हैं, उनको सिद्ध परमात्मा कहते हैं। जो अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अव्याबाध सुख, क्षायिक सम्यक्त्व, अटल अवगाहना, अमूर्त, अगुरुलघुता और अनन्त बल इन आठों गुणों के धारक होते हैं, वे हमारे विश्वास, उपासना, संयम, आराधना, प्रार्थना के साध्य-स्वरूप परम इष्ट परमात्मा है । उन सिद्ध भगवन्तों को मेरा नमस्कार हो।

(३) आचार्य किसे कहते हैं? 

जो पाँच महाव्रत, पाँच समिति, तीन गुप्ति और पांच आचार का पालन करते है । संघ के नायक है तथा संघ को आचार की शिक्षाऐ देते हैं। जो छत्तीस गुणों के धारक हैं, उनको आचार्य कहते हैं। उन पद सम्पन्न आचार्यों को मेरा नमस्कार हो।

(४) उपाध्याय किसे कहते हैं? 

जो ग्यारह अंग और बारह उपांग आदि आगमों के ज्ञानी हैं। साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका को ज्ञान की शिक्षाएँ देते हैं। जो पच्चीस गुणों के धारक हैं, उनको उपाध्याय कहते हैं | उन चतुर्विध श्री संघ के ज्ञान के भण्डार, पद सम्पन्न उन उपाध्यायों को मेरा नमस्कार हो।

(५) साधु-साध्वी किसे कहते हैं? 

जो पाँच महाव्रत, पाँच समिति और तीन गुप्ति का पालन करते हैं | जो मोह-ममता को छोड़कर बाईस परीषह को सहन कर समता की साधना करते हैं | जो सत्ताईस गुणों के धारक हैं, उनको साधु-साध्वी कहते हैं | सकल लोक में संयम तप साधना के साधक उन साधु-साध्वीयों को मेरा नमस्कार हो।

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