सामायिक ग्रहण करने की विधि
1. शान्त तथा एकान्त स्थान का उपाश्रय अथवा घर में चयन करें।
2. पूँजनी से उस स्थान का प्रमार्जन या प्रतिलेखन कर आसन बिछावें।
3. गृहस्थ वेश एवं वस्त्रों का परित्याग कर बिना सिले हुए वस्त्र धारण करें।
4. मुँह पर मुँहपत्ती धारण करें।
5. तत्पश्चात् गुरूजन या सतियाँ जी हों, तो उनकी ओर मुँह करके अथवा उनके न होने पर पूर्व अथवा उत्तर दिशा की ओर खड़े होकर सामायिक सूत्र के पाठों का निम्न क्रमानुसार उच्चारण करें
(क) गुरुवन्दन सूत्र (तिक्खुत्तो) - तीन बार
(ख) नवकार महामंत्र - एक बार
(ग) ईर्यापथिक सूत्र (इच्छाकारेणं का पाठ)- एक बार
(घ) आत्म-शुद्धि सूत्र (तस्स उत्तरी का पाठ) - एक बार
(ड) ईर्यापथिक सूत्र (इच्छाकारेण) का 'काउस्सग्ग' करें।
काउस्सग्ग की विधि इस प्रकार है- खड़े होकर दोनों पैरों के बीच में पीछे तीन अंगुल और आगे चार अंगुल जगह छोड़ कर दोनों हाथ सीधे लटका कर पैरों के अंगूठे के बीच में दृष्टि जमा कर वांछित पाठ का काउस्सग्ग (मन में चिन्तन) करें। यदि बैठे हुए काउस्सग्ग करना हो, तो पालथी लगाकर पालथी के मध्य भाग में बाएँ हाथ की हथेली में दाएँ हाथ की हथेली रखकर हथेली की सीध में दृष्टि जमाकर 'अप्पाणं वोसिरामि' शब्द बोलने के साथ काउस्सग्ग में स्थित हो वांछित पाठ का मौन काउस्सग्ग करे, काउस्सग्ग पूर्ण होने पर ‘णमो अरिहंताणं' प्रकट में बोले।
(च) कायोत्सर्ग शुद्धि का पाठ - एक बार
(छ) लोगस्स (तीर्थकर स्तुति) एक बार उच्चारण करें।
(ज) सामायिक प्रतिज्ञा सूत्र (करेमि भंते का पाठ) - एक बार।
पाठ बोलते समय 'जावनियम' के पश्चात् जितनी सामायिक लेनी हो, उतने मुहूर्त उपरांत न पालूँ तब तक, यह कहकर ‘पज्जुवासामि' बोलते हुए पाठ पूरा करें।
(झ) णमोत्थु णं (शकस्तव) का पाठ - दो बार
यह पाठ पढ़ने से पहले बायाँ घुटना खड़ा कर इस घुटने पर अंजलिबद्ध दोनों हाथ रखें। फिर इस पाठ का उच्चारण करें।
दूसरी बार णमोत्थु णं का पाठ बोलने पर 'ठाणं संपत्ताणं' के स्थान पर 'ठाणं संपाविउकामाण' का उच्चारण करें।
सामायिक ग्रहण करने के पश्चात् समापन काल (पारने तक) तक के कार्यक्रम
1. अध्ययन।
2. स्वाध्याय।
3. ध्यान।
4. जप, माला व आनुपूर्वी फेरना।
5. प्रवचन सुनना।
6. प्रार्थना, स्तवन आदि बोलना।
7. धार्मिक चर्चा या वार्ता करना।
सामायिक पारने की विधि
जितनी सामयिक का व्रत ग्रहण किया, उतना मुहूर्त (समय) पूर्ण होने पर निम्नानुसार सूत्रों का क्रमशः उच्चारण करें :
1. नवकार-मंत्र - एक बार
2. ईर्यापथिक सूत्र (इच्छाकारेणं का पाठ) - एक बार
3. आत्मशुद्धि सूत्र (तस्सउत्तरी का पाठ) - एक बार
4. लोगस्स सूत्र (तीर्थकर स्तुति का पाठ) - एक बार काउस्सग्ग करें।
5. णमो अरिहंताणं' प्रकट में बोलें।
6. कायोत्सर्ग - शुद्धि का पाठ - एक बार
7. लोगस्स (तीर्थकर स्तुति) - एक बार ।
8. णमोत्थु णं (शक्रस्तव) - का पाठ - दो बार
9. एयस्स नवमस्स का पाठ (सामायिक समापन सूत्र) - एक बार
10. नवकार महामन्त्र - तीन बार
सामायिक के बत्तीस दोष
मन के दस दोष
1. अविवेक दोष = विवेक नहीं रखना।
2. यशोवांछा दोष = यशकीर्ति की इच्छा करना।
3. लाभ वांछा दोष = धनादि के लाभ की इच्छा करना।
4. गर्व दोष = गर्व करना।
5. भय दोष = भय करना।
6. निदान दोष = भविष्य के सुख की कामना करना।
7. संशय दोष = सामायिक के फल की प्राप्ति में सन्देह करना।
8. रोष दोष = क्रोध करना।
9. अविनय दोष = देव, गुरु, धर्म की अविनय आशातना करना।
10. अबहुमान दोष = भक्तिभावपूर्वक सामायिक न करना।
वचन के दसदोष
1. कुवचन दोष = बुरे वचन बोलना।
2. सहसाकार दोष = बिना विचारे बोलना।
3. स्वच्छन्द दोष = राग-रागनियों से सम्बन्धित गीत गाना।
4. संक्षेप दोष = पाठ और वाक्यों को छोटे करके बोलना।
5. कलह दोष = क्लेशकारी वचन बोलना।
6. विकथा दोष = स्त्रीकथा, भोजन कथा, देश कथा और राजकथा, इन चार विकथाओं में से कोई विकथा करना।
7. हास्य दोष = हँसी ठठ्ठा करना।
8. अशुद्ध दोष = पाठ को अशुद्ध बोलना।
9. निरपेक्ष दोष = बिना उपयोग बोलना।
10. मुम्मण दोष = अस्पष्ट-मुण मुण बोलना।
काया के बारह दोष
1. कुआसन दोष = अयोग्य-अभिमान आदि के आसन से बैठना।
2. चलासन दोष = आसन बार-बार बदलना।
3. चलदृष्टि दोष = इधर-उधर दृष्टि फेरना।
4. सावद्य-क्रिया दोष = सावद्य क्रिया-सीना, पिरोना आदि गृह कार्य करना।
5. आलम्बन दोष = भीतादि का सहारा लेना।
6. आकुंचन प्रसारण दोष = बिना कारण हाथ पैर फैलाना, समेटना।
7. आलस्य दोष = अंग मोड़ना।
8. मोटन दोष = हाथ पैर की अंगुलियों का कड़का निकालना।
9. मल दोष = मैल उतारना।
10. विमासन = गले या गाल पर हाथ लगाकर शोकासन से बैठना।
11. निद्रा = निद्रा लेना।
12. वैयावृत्त्य = बिना कारण दूसरों से वैयावृत्त्य-सेवा कराना।