ज्ञान पंचमी तप
महत्व
एक बार अहिंसा के प्रवर्तक, शासन नायक, श्रमण भगवान महावीर स्वामी अपने ज्येष्ठ शिष्य गणधर गौतमादि के साथ राजगह नगर में पधारे। प्रभु आगमन का सुखद समाचार सुनकर महाराजा श्रेणिक धर्मस्नेही संघजन तथा जनता प्रभु के दर्शन वंदन एवं अमृतवाणी के श्रवण का लाभ प्राप्त करने आए।
सभी को ज्ञान की आकांक्षा थी, सभी ज्ञान चाहते थे, प्रभ ने देशना दी "पढमं नाणं" अर्थात् ज्ञान ही प्रथम है, मूल है। ज्ञान की शक्ति अदभुत है। ज्ञान सुखी जीवन के लिये परमावश्यक है। कहा भी है
ज्ञानाद्विदन्ति खलु कृत्यमकृत्य जातं,
ज्ञानाच्चरित्रममलं च समाचरन्ति।
ज्ञानाच्च भव्य भविनः शिवमाप्नुवन्ति,
ज्ञानं हि मूलमतुलं सकलश्रियां तत्।।
विश्व में सूर्य, चन्द्र, दीपक आदि अनेक प्रकाशवान पदार्थ हैं, किन्तु ज्ञान इन सबसे निराला है। सूर्यादि का प्रकाश जड़ है, अतः वह बाह्य अन्धकार का ही संहार कर सकता है, किन्तु ज्ञान का प्रकाश चेतनामय होने से अनुपम है।
ज्ञान का फल
(१) ज्ञान से भाव अज्ञान अन्धकार का विनाश होता है।
(२) ज्ञान के द्वारा कर्त्तव्याकर्त्तव्य का विवेक उत्पन्न होता है।
(३) ज्ञान के आलोक से ही निर्मल चारित्र्य का आराधन होता है।
(४) जहाँ ज्ञान नहीं, वहाँ उग्र से उग्र क्रिया भव भ्रमण का कारण बनता है।
(५) ज्ञानपूर्वक चारित्र से ही भव्य जीव मुक्ति को प्राप्त करते हैं।
(६) समस्त लौकिक एवं लोकोत्तर सम्पत्ति का मूल ज्ञान ही है।
(७) इस असार विश्व में कोई प्रथम सार वस्तु है, तो वह सम्यग् ज्ञान है।
(८) जो ज्ञान मोक्ष और उसका मार्ग भी बताकर संसार के बंधनों से मुक्त करता है, वही सम्यग् ज्ञान है।
(९) ज्ञान ही सर्व तत्त्वों में महान तत्त्व है और यही मोक्ष का प्रशस्त मूल है।
अतः मोक्षार्थी का मुख्य कर्तव्य है कि वे सर्वप्रथम सम्यग् ज्ञान की आराधना करें।
ज्ञान पंचमी तप के लाभ
अज्ञानान्धकार में मूढ आत्मा अनन्तकाल से भटक रही है। पूर्व भवो में आत्मा ने जो पापकर्मों का संचय किया है, उसके कारण जीव दुखी एवं पीडित एवं व्यथित है, आधि-व्याधि एवं उपाधि से संत्रस्त है।
इन वेदनाओं से मुक्त होकर शाश्वत सुख को प्राप्त करने के लिये कई सम्यग ज्ञान व बोध की आराधना करने के लिये "ज्ञान पंचमी तप' कथा में उल्लिखित तप को अंगीकार करना चाहिए। इसे समझने हेतु "वरदत्त कुमार एवं गुण मंजरी" की कथा ध्यानपूर्वक श्रवण करें। ये तप मूल रूप से मोक्षकामना से आत्म-साधना के लिये ही किए जाते हैं, किन्तु कुछ लोग इन तपों की आराधना पुत्र, धन, यश, ऐश्वर्यादि की प्राप्ति के लिये भी करते हैं।
तपाराधकों को चाहिए कि - तप के साथ-साथ जप, प्रभु नाम गुण कथा स्मरण, स्वाध्याय आदि भी अवश्य करें, जिससे कि तप का पूरा-पूरा लाभ मिल सके।
ज्ञान पंचमी तप की विधि
विधि :- कार्तिक शुक्ल पंचमी से यह तप आरम्भ किया जाता है। प्रत्येक मास की शुक्ल पंचमी के दिन उपवास करें। उपवास के दिन पौषध करके दैवसिक और रात्रिक अर्थात् उभयकाल का प्रतिक्रमण आता हो, तो अवश्य करें और न आता हो, तो दूसरों से सुनें।
(१) शुद्ध आसन पर बैठकर उत्तर-पूर्व दिशा ईशान कोण की ओर मुँह करें और मौन धारण करके "ॐ ह्रीं श्रीं णमोणाणस्स" मन्त्र की २१ माला जपें।
(२) इक्कावन लोगस्स का ध्यान करना चाहिये। (ज्ञान के५ १ भेद होते हैं)
(३) बारह नमोऽत्थुणं, बायाँ घुटना खड़ा रख कर देना चाहिए।
(४) बारह वंदना तिक्खुत्तों के पाठ से करें, एक बार पुच्छिंस्सुणं गिनें।
(५) उस दिन "ज्ञान-पंचमी" की कथा अवश्य पढ़ें या सुनें।
(६) साधु-साध्वीजी विराजमान हों, तो जाकर उनके दर्शन करें, मांगलिक सुनें तथा पारणे के पूर्व सुपात्र को दान अवश्य दें।
(७) पाँच वर्ष और पाँच महीनों में ६५ (पैंसठ) उपवास होते हैं। इस प्रकार पाँच वर्ष और पाँच मास तक ज्ञान की आराधना करनी चाहिए।
(८) इस प्रकार पाँच वर्ष और पाँच मास पर्यन्त ज्ञान-पंचमी की आराधना से कर्म की महा निर्जरा होती है एवं अवश्य मेव आनन्द मंगल होता है।
(९) कदाचित् प्रत्येक महीने की शक्ल पंचमी की आराधना करने की शक्ति सुविधा न हो, तो जीवन-पर्यन्त प्रत्येक वर्ष की कार्तिक शुक्ल पंचमी आराधन करने पर भी उल्लेखित फल की प्राप्ति होती है।
ज्ञान पंचमी कथा में उल्लिखित गुण मंजरी व वरदत्त कुमार ने आचार्य श्री का उपदेश सुनकर प्रत्येक वर्ष 'कार्तिक शुक्ल पंचमी' को उपवास करने का नियम धारण कर प्रत्येक मास शुक्ल पंचमी को उपवास किया। प्रत्येक तपाराधक के लिये यह नितान्त आवश्यक है कि वह तप-आराधना श्रद्धाभक्ति एवं उत्साहपूर्वक करते हए निम्नलिखित नियमों का उस दिन पूर्ण पालन करें
नियम
(१) पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना।
(२) पलंग, गादी, तकिये आदि का त्याग करना।
(३) रात्रि को चौविहार करना।
(४) आरम्भ समारम्भ न करना।
(५) असत्य भाषण न करना।
(६) अश्लील मजाक आदि न करना।
(७) स्वाध्याय, चिन्तन, मनन में दिन व्यतीत करना।
(८) पौषध करना।
(९) नवकारसी करने के बाद विधि पूर्वक पारणा करना।
तप पूर्ति विशेष
तप पूर्ति के दिन निम्न विधि से तप का उद्यापन यथा शक्ति करे (१) पाच पुस्तकें. (२) पाँच आसन, (३) पाँच मुख-वस्त्रिकाएँ, (४) पाँच पुंजनिया (4) पाँच मालाएँ, (६) पाँच बेग, (७) पाँच दरियाँ, (८) पाँच थाली सेट (९) पाँच अन्य आयटमें। इत्यादिक वस्तुएँ सु-श्रावक को या भंडार में चढाए।
इस प्रकार विधियुक्त तप-जप करने से कर्मबंध के साथ सदा आनन्द-मंगल रहेगा।