चंदनबाला और मृगावती प्रभु वीर की वाणी सुनने गये । चंदनवाला समय पर उपाश्रय वापिस आ गई । मृगावती को आने में देर हो गई । तब चंदनवाला ने कहा, "कुलीन व्यक्ति को इतनी देर से आना शोभा नहीं देता।
बस, अपनी इसी भूल के कारण मृगावती की आँखों से पश्चात्ताप के आँसू बहने लगे और पश्चात्ताप के उसी निर्मल जल में नहाकर मृगावती को केवलज्ञान प्राप्त हुआ। इस बात का ज्ञान जब गुरुणी चंदनबाला को हुआ तो वे मन ही मन पश्चात्ताप करने लगी कि मैने केवली की अशातना की। साथ ही उन्होंने मृगावती से क्षमा भी माँगी । अपने द्वारा दी हुई सौम्य डॉट को गलत समझकर पश्चात्ताप के नीर कलकल करते हुए बहे और चंदनबाला ने भी केवलज्ञान प्राप्त किया।