भाषा समिति-पाँच समिति
भाषा समिति - निरवद्य वचन बोलने की सम्यक् (निर्दोष) प्रवृत्ति को भाषा समिति कहते है।
वचन के दोष - 1. क्रोथ, 2. मान, 3. माया, 4. लोभ, 5. हास्य, 6. भय, 7. मोखर्य (वाचालता) और 8. विकथा।
इन आठ दोषों में एकाग्रता को दृष्टांत द्वारा स्पष्ट करते हैं।
1. क्रोध में एकाग्रता - जैसे कोई पिता, अति क्रोधित होकर अपने पुत्र के प्रति बोले कि- 'तू मेरा पुत्र नहीं है और पास में खड़े हुए मनुष्यों को कहे कि 'बांधों बांधों इसे' इत्यादि।
2. मान में एकाग्रता - जैसे कोई पुरुष अभिमान से गर्वित होता हुआ बोले कि - 'जाति आदि में मेरी बराबरी करने वाला कोई नहीं है।'
3. माया में एकाग्रता - जैसे कोई पुरुष अनजान जगह रहा हुआ दूसरों को ठगने के लिए पुत्रादि के विषय में बोले कि - 'न तो यह मेरा पुत्र है और न में इसका पिता हूँ' इत्यादि।
4. लोभ में एकाग्रता - जैसे कोई वणिक दूसरों की वस्तु को भी अपनी कहे।
5. हास्य में एकाग्रता - जैसे कोई मजाक में कुलीन पुरुष को भी अकुलीन कह कर बुलावे।
6. भय में एकाग्रता - जैसे किसी ने किसी प्रकार का अकार्य किया और दूसरे ने उससे पूछा कि - "तूं तो वही है जिसने अमुक समय में अमुक अकार्य किया था?" तब वह भय से कहे कि- 'मैं उस समय उस जगह नहीं था' इत्यादि।
7, मौखर्य में एकाग्रता - जैसे कोई बकवादी, दूसरों की निंदा करता ही रहे।
8. विकथा - (स्त्री आदि कथा) में एकाग्रता - जैसे कोई बोले कि अहो! स्त्री के कटाक्ष कैसे है? इत्यादि। इस प्रकार क्रोधादि में एकाग्रता होने पर प्रायः शुभ भाषा नहीं बोली जाती। इसलिए इन पूर्वोक्त आठ दोषों को छोड़ कर बुद्धिमान् साथु को निरवद्य (निर्दोष) और अवसर देख कर परिमित वचन बोलने चाहिए।
भाषा समिति के चार भेद - 1. द्रव्य 2. क्षेत्र 3. काल 4. भाव।
1. द्रव्य से - सावद्य भाषा 1. कठोर, 2. कर्कश, 3. छेदक, 4. भेदक, 5. निश्चयात्मक, 6. सावद्य, 7. क्लेशोत्पादक और 8. मिश्र, इन आठ भाषाओं को छोड़कर साधु निरवद्य भाषा बोले।
2. क्षेत्र से - (रास्ते) मार्ग में चलता हुआ नहीं बोले
3. काल से - प्रहर रात्रि बीतने पर (सूर्योदय तक) जोर से नहीं बोले।
4. भाव से - उपयोग सहित (राग-द्वेष रहित) बोले।