नवकार मन्त्र जप के प्रकार और विधि

नवकार मन्त्र जप करने से पहले दृढ़ संकल्प चाहिए, नियमित अभ्यास चाहिए। मंत्र जाप के समय एकाग्रता चाहिए। मंत्र आराधना क्षेत्र में, भावना और वातावरण का प्रभाव होता है, रंगों का प्रभाव होता है।

नवकार मन्त्र जप के प्रकार और विधि

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जप के प्रकार और विधि

सबसे पहले दृढ़ संकल्प चाहिए, नियमित अभ्यास चाहिए। मंत्र जाप के समय एकाग्रता चाहिए। मंत्र आराधना क्षेत्र में, भावना और वातावरण का प्रभाव होता है, रंगों का प्रभाव होता है।

नमस्कार महामंत्र अध्यात्म मंत्र है। उसके जप एवं ध्यान के लिए किसी विशेष समय एवं व्यवस्था की आवश्यकता नहीं। यह मंत्र सर्वकाल, सर्व क्षेत्र में ध्यातव्य और जपनीय है। जप और ध्यान में मन, वचन और काया की एकाग्रता से होता है। प्रातःकाल शांत, प्रसन्न होता है, तब इसका जप, सरल और सहजता से होता है। मंत्र जाप के समय शुद्धाशुद्धि का अपना महत्त्व है। भाव शुद्धि, विशुद्ध भाव से परिणाम मिलते हैं। निर्मल भाव अवस्था ही कर्मों को क्षीणकार चेतना को निर्मल बनाती है।

नमस्कार महामंत्र की अर्हता

नमस्कार महामंत्र की अर्हता अचिंतनीय है, जिसकी सामान्य व्यक्ति कल्पना भी नहीं कर सकता। नमस्कार महामंत्र के कारण लाखों लोगों ने अपने जीवन को पवित्र एवं समतामय बनाया है। पवित्र अथवा अपवित्र, सुख अथवा दुःख किसी भी स्थिति में नवकार मंत्र का जाप करने वाला मुक्त हो जाता है।


महामंत्र की साधना-कैसे करे?

मंत्र शास्त्र में साधना की अनेक प्रणालियों का उल्लेख मिलता है। मन, वचन, काया की स्थिरता और एकाग्रता सबसे महत्त्वपूर्ण है। जप में स्थूल, सूक्ष्म और सूक्ष्मतम ध्वनि के अलग-अलग स्तर बनते हैं। इसे ही वैखरी, मध्यमा और पश्यन्ती कहते है।

साधारण लोग बोलते है, वह स्थूल ध्वनि, जो मुख्यतः शरीर और कर्णेन्द्रिय को प्रभावित करती है। इस ध्वनि से मंद स्वर में बोली जाती व सूक्ष्म ध्वनि जो मन को प्रभावित करती है। पश्यन्ति अत्यंत सूक्ष्म ध्वनि, वाणी का मन के साथ योग, यह ध्वनि आभामण्डल एवं चेतना पर आये आवरणों को प्रकंपित करती है।

स्थूल ध्वनि जिसे वैखरी कहते हैं, यह चंचल साधक के लिए आवश्यक है। मन में । विकल्प उठते है, तभी यह जाप करने से साधक स्वस्थ एवं शान्त होता है। धीरे-धीरे सुक्ष्म और सूक्ष्मतर अभ्यास कर सकते हैं। स्थूल ध्वनि मुख्यतः शरीर और कर्णेन्द्रिय को प्रभावित करती है। सूक्ष्म ध्वनि मन को प्रभावित करती है। सूक्ष्मतम ध्वनि आभामण्डल एवं चेतना पर आये आवरणों को प्रभावित करती है।

चतुर व्यक्ति रात्रि के अन्तिम प्रहर के अर्द्ध भाग शेष रहते निद्रा का त्याग कर दुष्कर्म रुपी राक्षस को दमन कर मन, वचन, काया से परमेष्ठि का जप एवं ध्यान करे।नमस्कार महामंत्र में किसी व्यक्ति विशेष की आराधना नहीं, यह आत्मा के निकट जाने का मंत्र है।

मंत्र साधक के लिए आवश्यक है कि वह मानसिक स्थिरता के लिए श्वास याने स्वर की गति, आकृति, स्पर्श और उसके रंगों को समझें।

महामंत्र के उच्चारण की अनेक विधियाँ हैं जैसे शरीर के अवयव पर मंत्रजप करते हैं, रंगों के साथ जप करते हैं, श्वास के साथ लयबद्ध मंत्र साधना होती है, पंचतत्वों में अपना विज्ञान भी है। चैतन्य केन्द्रों पर भी जाप किया जाता है। इस प्रकार मंत्र की आराधना में जैसे क्षेत्र भावना और वातावरण का प्रभाव होता है, वैसे ही रंगों का भी प्रभाव होता है।

बने अर्हम पुस्तक (लेखक अलका सांखला) से साभार

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