नमस्कार मंत्र और रंग
आधुनिक विज्ञान में रंगों पर भी अन्वेषण हो रहा है। यह विज्ञान का एक स्वतंत्र विषय बन चुका है।
नवकार मंत्र की आराधना बीजाक्षरों के साथ की जा सकती है। तथा एक - एक पद की एक - एक चैतन्य केंद्र में की जाती है तथा वर्णों या रंगों के साथ भी की जाती है।
मंत्रविद् आचार्यों ने नमस्कार मंत्र के साथ रंगों का बहुत ही सुंदर वर्णन किया है। नवकार मंत्र की शक्ति में अपार श्रद्धा रखनेवाले आचार्य भगवंतो ने नवकार मंत्र के रहस्यों के आधार पर एक-एक पद के लिए एक एक रंग की समायोजना की है ऐसा बताया पाया है कि हमारा सारा जगत् पौद्गलिक है। पुद्गल के चार लक्षण है - वर्ण, गंध, रस और स्पर्श। सारा मूर्त संसार वर्ण, गंध, रस और स्पर्श के प्रकंपों से प्रकंपित है। इतना ही नहीं वर्ण से हमारे शरीर का बहुत निकट का संबंध है। वर्ण से हमारे मन का आवेगों का, कषायों का बहुत बड़ा संबंध है। शरीर या मन की स्वस्थता का आधार भी रंगों पर है।
वर्तमान आरोग्य शास्त्र और रंग का नजदीक का संबंध है। नीला रंग शरीर में कम होता है तब क्रोध अधिक आता है। नीले रंग की पूर्ति हो जाने पर क्रोध कम हो जाता है। श्वेत रंग की कमी हो तो स्वास्थ्य बिगडता है। लाल रंग की कमी होने पर आलस्य और जड़ता बढ़ती है। काले रंग की कमी होने पर प्रतिरोध की शक्ति कम हो जाती है।
प्रथम पद नमो अरिहंताणं का ध्यान श्वेत वर्ण के साथ करना चाहिये। क्योंकि श्वेत वर्ण हमारी आंतरिक शक्तियों को जागृत करने वाला होता है। श्वेतवर्ण के बारे में मंत्र शास्त्र ऐसा कहते है कि ये स्वास्थ्यदायक मंत्र है। मंत्रशास्त्र की तरह आरोग्य शास्त्री भी कहते है कि - यदि किसी को सुखमय आरोग्य की प्राप्ति करना हो तो श्वेतवर्ण परम उपकारी साबित होगा । रोग निवारण और शांति के लिए सफेद रंग बहुत उपयोगी हो सकेगा। नवकार मंत्र के प्रथम पद और सफेद रंग का हमारी साधना में बहुत बड़ा योगदान हो सकता है।
दूसरा पद नमो सिद्धाणं का ध्यान रक्तवर्ण के साथ किया जाता है। बाल सूर्य जैसा लाल वर्ण हमारी आंतरिक दृष्टि को जागृत करने वाला है। इस रंग की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि - वह सक्रीयता पैदा कर सकता है। सूस्ती या आलस्य का अनुभव हो अथवा जड़ता आ जाए तो, उसे दूर करने के लिए लाल रंग का ध्यान बहुत कल्याणकारी साबित होगा। आत्म साक्षात्कार, अंतर्दृष्टि का विकास, अतींद्रिय चेतना का विकास यह दूसरे पद में हो सकता है। नमो सिद्धाण मंत्र, लालवर्ण दोनों का संगम हमारी आंतरिक दृष्टि को जागृत करने का अनुपम साधन है। इसलिए दूसरे पद में लाल रंग का मिलन संयोजन अनिवार्य है। हम यह नहीं कह सकते है कि किसी को कब सिद्धि प्राप्त हो सकती है, लेकिन इतना हम अवश्य कह सकते है कि जिस मार्ग पर हम चलते है वह हमें अवश्य मंजिल तक ले जाएगा।
तीसरा पद नमो आयरियाणं है। इसका रंग पीला है। यह रंग हमारे मन को सक्रिय बनाता है। हमारे शरीर में सूरज है, चांद है, बुध है राहु है, मंगल है। सारे ग्रह हैं। चंद्र और मन का घनिष्ट संबंध है। जैसी स्थिति चंद्रमा की होती है वैसी स्थिती मन की होती है। आरोग्य शास्त्री कहते है कि मानव वृत्तियों पर नियंत्रण करनेवाली ग्रंथि थायरोईड है। इस ग्रंथी का स्थान कंठ है। रंग के साथ इस केंद्र पर तिसरे पद का ध्यान करने से हमारी वृत्तियाँ शांत हो जाती है और पवित्रता की दिशा में वे सक्रिय बनती है। यहाँ मन पवित्र होता है, निर्मल होता है।
चौथा पद नमो उवज्झायाणं है। इसका रंग हरा है। हरा रंग शांति देनेवाला है। यह रंग समाधि और एकाग्रता पैदा करता है। कषायों को शांत करता है और आत्म साक्षात्कार में सहाय करता है। नीले रंग के साथ इस पद की साधना करने से परमानंद की प्राप्ति होती है।
पांचवाँ पद नमो लोए सव्व साहूणं है। इसका काला रंग है। काले वर्ण के साथ इस पद की आराधना की जाती है। काला वर्ण अवशोषक होता है । वह बाहर के प्रभाव को भीतर नहीं जाने देता। काला वर्ण व्यक्ति को अपना व्यक्तित्व या गुण जैसा का वैसा रखने में उपयोगी साबित हो सकता है। बाह्य प्रलोभन या तो बाधाए साधक आत्मा की आंतरिक चेतना को कुछ भी असर नहीं कर सकता है । काला रंग गुणवृद्धि में सहायक होता है। न्यायालय में न्यायाधीश और वकील काला कोट पहनते है इसका कारण यह है कि - उनको बाहरी वातावरण से सुरक्षित रखता है।
जैन धर्म के नवकार मंत्र में नमो लोए सव्व साहूण पद का समीक्षात्मक समालोचन पुस्तक से साभार (लेखक साध्वी चरित्रशिला जी)