आवश्यक सूत्र के अनुसार आचार्य के छत्तीस गुण
पंचिदियसंवरणो, तह नवविहबंभचेरगुत्तिधरो।
चउविहकसाय-मुक्को, इह अट्ठारसगुणेहिं संजुत्तो।।
पंचमहव्वयजुत्तो, पंचविहायारपालण-समत्थो।
पंचसमिओ तिगुत्तो, इइ छत्तीसगुणेहिं गुरु मज्झं।।
(1-5) पाँच इन्द्रियों का संवर करना।
(6-14) नवविध ब्रह्मचर्य-इन्हें साधारण भाषा में ब्रह्मचर्य की नव-बाड़ भी कहते हैं। जैसे-खेत की बाड़ फसल का संरक्षण करती है, ताकि कोई पशु आकर उसे नष्ट न कर दे, वैसे ही नवबाड़ें ब्रह्मचर्य का संरक्षण करती हैं।
(15-18) चार कषाय का त्याग करना।
(19-23) पाँच महाव्रत का पालन करना।
(24-28) पाँच आचार का पालन करना।
(29-36) पाँच समिति, तीन गुप्ति का पालन करना।