आगमो की संख्या

जैन श्वेताम्बर स्थानकवासी एवं तेरापंथ सम्प्रदायों में 11 अंग, 12 उपांग, 4 छेद, 4 मूल, 1 आवश्यक सूत्र, ये 32 आगम प्रामाणिक रूप से माने जाते हैं।

आगमो की संख्या

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आगमो की संख्या

गणधरों द्वारा ग्रथित मूल आगम 12 हैं। जिनमें से दृष्टिवाद का लोप होने से 11 अंग, 12 उपांग, 10 प्रकीर्णक, 6 छेद सूत्र, 4 मूल सूत्र एवं 2 चूलिका इस प्रकार कुल 45 आगम भी बतलाये गये हैं। नंदीसूत्र में कालिक एवं उत्कालिक सूत्रों के विवेचन में आगमों की संख्या 75 मानी गई है। लेकिन वर्तमान में जैन श्वेताम्बर स्थानकवासी एवं तेरापंथ सम्प्रदायों में 11 अंग, 12 उपांग, 4 छेद, 4 मूल, 1 आवश्यक सूत्र, ये 32 आगम प्रामाणिक रूप से माने जाते हैं।

(अ) अंग - जिन-प्रणीत अर्थरूप वाणी को गणधरों द्वारा सूत्र रूप में ग्रन्थन किया जाता है। उनके द्वारा रचित शास्त्रों को अंग सूत्र कहते हैं। 11 अंग इस प्रकार हैं- 1. आचारांग 2. सूत्रकृतांग 3. स्थानांग 4. समवायांग 5. भगवती 6. ज्ञाताधर्म कथा 7. उपासक दशा 8. अन्तकृत दशा 9. अनुत्तरोपपातिक 10. प्रश्न व्याकरण 11. विपाक सूत्र।।

(ब) उपांग - अंगों में वर्णित विषयों का विस्तार पूर्वक विवेचन करने वाले शास्त्र उपांग कहलाते हैं। उपांग 12 हैं, यथा- 1, औपपातिक 2. राजप्रश्नीय 3. जीवाजीवाभिगम 4. प्रज्ञापना 5. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति 6. चन्द्र प्रज्ञप्ति 7. सूर्य प्रज्ञप्ति 8. कल्पिका (निरयावलिका) 9. कल्पावतंसिका 10. पुष्पिका 11. पुष्पचूलिका 12. वृष्णिदशा।

(स) छेद सूत्र - जिनमें साधुओं के सबल दोष एवं प्रायश्चित्त आदि का विधान हो, उन्हें छेद सूत्र कहते हैं। छेद सूत्र 4 हैं- 1. दशाश्रुतस्कन्ध 2. बृहत्कल्प 3. व्यवहार सूत्र, और 4. निशीथ सूत्र।।

(द) मूल सूत्र - आत्मा के मूल गुण (सम्यक् ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप) के प्रतिपादक होने से इन्हें मूल सूत्र कहते हैं। इनके पठन-पाठन से धर्म रूपी वृक्ष का मूल सम्यक्त्व दृढ़ होता है, इसलिये भी इन्हें मूल सूत्र कहते हैं। मूल सूत्र चार हैं- 1. दशवैकालिक 2. उत्तराध्ययन 3. नंदी और 4. अनुयोगद्वार सूत्र।

(य) आवश्यक सूत्र - अवश्य करणीय या पठनीय होने से इसे आवश्यक सूत्र कहते हैं। इसमें छः अवश्य करणीय कार्यों का वर्णन होने से भी इसे आवश्यक सूत्र कहते हैं।

आगम के ज्ञान एवं स्वाध्याय से लाभ
1. सम्यग् ज्ञान की प्राप्ति होती है।
2. आगम, स्वाध्याय रूप तप होने से कर्मो की निर्जरा होती है।
3. काम भोगों से विरति होती है, त्याग-मार्ग में प्रवृत्ति होती है।
4. कषायों का उपशमन होने से मन शान्त एवं स्वच्छ होता है।
5. अपूर्व सुख एवं शान्ति का अनुभव होता है।
6. संसार परीत होता है, आत्मा निर्मल तथा विशुद्ध होती है।


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