उत्तराध्ययन सूत्र 10/3

उत्तराध्ययन सूत्र 10-3 पूर्व सञ्चित कर्म रूप रज को साफ करो

उत्तराध्ययन सूत्र 10/3

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।। विहुणाहि रयं पुरे कडं ।।   

पूर्व सञ्चित कर्म रूप रज को साफ करो   कुत्ता भी जब किसी स्थान पर बैठता है, तब उस स्थान की सफाई कर देता है। यह प्रवृत्ति बतलाती है कि स्वच्छता प्राणियों को प्रिय है।यदि कुछ दिनों तक कपड़े न धोये जायें; तो वे कितने गन्दे हो जाते हैं ? कितने बुरे लगने लगते हैं ? गन्दे कपड़े जिसने धारण कर रखे हों, उसके निकट बैठना भी हम पसंद नहीं करते। इसी प्रकार मैला शरीर, मैला मकान, मैली वस्तुएँ हमें अच्छी नहीं लगती। हम चाहते हैं कि हमारे सम्पर्क में आनेवाली प्रत्येक वस्तु स्वच्छ हो।ज्ञानी कहते हैं कि इस बाह्य स्वच्छता की अपेक्षा आन्तरिक स्वच्छता अधिक आवश्यक है। मन मैला हो तो वह मैले तन की अपेक्षा अधिक घातक होगा। कषायों से मन मैला होता है; इसलिए मन को उनसे दूर रखें। इसके बाद आत्मा पर विचार करें। पूर्व भव के सञ्चित कर्म उससे चिपके हुए हैं। जिस प्रकार हम दो-तीन बार झाडू लगाकर मकान के फर्श की धूल साफ करते हैं, उसी प्रकार अहिंसा, संयम और तप के द्वारा हमें आत्मा पर लगी हुई कर्म रूप रज (धूल) साफ करनी चाहिये।   

- उत्तराध्ययन सूत्र 10/3

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