उत्तराध्ययन सूत्र - आठवां अध्ययन - 17
तृष्णा क्यों शांत नहीं होती?
जहा लाहो तहा लोहो, लाहा लोहो पवड्ढई।
दो मासकयं कज्जं, कोडीए वि ण णिट्ठियं ॥१७॥
भावार्थ - ज्यों-ज्यों लाभ होता जाता है त्यों-त्यों लोभ बढ़ता जाता है। लाभ से लोभ की वृद्धि होती है, कपिल मुनि का दो माशा सोने से होने वाला कार्य लोभ वश करोड़ मोहरों से भी पूरा नहीं हुआ।
विवेचन - प्रस्तुत गाथा में कपिल केवली ने अपने निजी वृत्तान्त का उदाहरण देकर आत्मा की दुष्पूर्णता - अतृप्ति का सुन्दर चित्रण किया है। लाभ से लोभ बढ़ता जाता है जो आत्मा यथालाभ में संतोष मान कर निश्चिंत रहते हैं वे ही वास्तव में सुखी हैं।