ज्ञानमग्नता

पुर्णता के शिखर पर पहुँचने का एकमेव साधन/प्रथम सोपान है - ज्ञानमग्नता।

ज्ञानमग्नता

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मग्नता! तन्मयता!

समग्रतया लीनता, तल्लीनता!
और उस में भी ज्ञान-मग्नता!

मतलब, ज्ञानार्जन, ज्ञान-चर्चा, ज्ञानप्रबोधन में अपने आपको स्वयं को पूर्ण रूप से लीन कर देना।

पुर्णता के शिखर पर पहुँचने का एकमेव साधन/प्रथम सोपान है - ज्ञानमग्नता।

आज तक विषयवासना, मोह-लोभ । और परिग्रह...सब कुछ प्राप्त करने की ललक में सदा-सर्वदा खोये रहे। लेकिन । क्या मिला? अपार अशान्ति, संताप, । क्लेश और कलह...साथ में उद्वेग और उदासीनता!

फलतः हमें दुबारा सोचना होगा, चिन्तन व मनन करना होगा कि जिसके कारण परमानन्द का 'पिन पोइंट' प्राप्त हो जाये, अक्षय प्रसन्नता और अपूर्व शान्ति के द्वार खुल जाएँ, दिव्य चितन की पगडंडी मिल जाय और मोक्षमार्ग स्पष्ट रूप से नजर आने लगे।  ऐसी मग्नता तल्लीनता पाने के लिए हमें भगीरथ प्रयत्न करने होंगे।  एक बार तो पठन-मनन कर देखें ।


न्यायाचार्य न्यायविशारद महोपाध्याय श्री यशोविजयजी विरचित ज्ञानसार

विवेचनकार प्रन्यासप्रवर श्री भद्रगुप्तविजयजी गणिवर

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