धर्माचार्य को वन्दन
जत्थेव धम्मायरियं पासेज्जा, तत्थेव वंदिज्जा नमंसिज्जा
जहॉं कहीं भी धर्माचार्य दिखाई दें, वहीं उन्हे वन्दना नमस्कार करना चाहिये आचारकी प्रेरणा देने वाले आचार्य हैं और यह प्रेरणा जिन्हें प्राप्त होती है, उनके द्वारा वे प्रणम्य हैं। सदाचारी ही सदाचार की प्रेरणा दे सकते हैं, दुराचारी नहीं। सदाचारी जानते हैं कि सच्चे आचरणों में कैसे-कैसे संकट आते हैं, जहॉं धीरज और सहिष्णुता की आवश्यकता होती है। इस प्रकार संयम के साधकों का वे भली भॉंति मार्गदर्शन कर सकते हैं। यह मार्गदर्शन हमें जिनसे मिलता है, वे महान पुरुष हमारे उपकारी हैं। उनके उपकारों का बदला हम जीवनभर उनकी सेवा करके भी नहीं चुका सकते; इसलिए उनके प्रति कृतज्ञता सदा जागृत रहनी चाहिये। कृतज्ञता अपनी कृति से भी अभिव्यक्त करनी चाहिये इसके लिए इस नियम का पालन करने का निर्देश दिया गया है; कि जहॉं भी अपने धर्माचार्य दिखाई दें, वहीं तत्काल उन्हें वन्दन और नमस्कार करना चाहिये।
- राजप्रश्नीय 4/76