प्राकृतिक चिकित्सा में उपवास का महत्व

पेट के रोगों में उपवास चिकित्सा का सर्वाधिक महत्व है। रोगी की अवस्था के अनुसार अर्ध उपवास, एकाहार रसोपवास, फल उपवास, मठ्ठा उपवास कराया जाता है। पूर्ण उपवास में सादे जल के अलावा कुछ नहीं दिया जाता है।

प्राकृतिक चिकित्सा में उपवास का महत्व

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प्राकृतिक चिकित्सा में उपवास का महत्व

पेट के रोगों में उपवास चिकित्सा का सर्वाधिक महत्व है। रोगी की अवस्था के अनुसार अर्ध उपवास, एकाहार रसोपवास, फल उपवास, मठ्ठा उपवास कराया जाता है। पूर्ण उपवास में सादे जल के अलावा कुछ नहीं दिया जाता है।

उपवास विधि

मानसिक रूप से स्वयं को तैयार करे तथा शारीरिक द्रष्टि से प्रारम्भ में दो दिन भोजन की मात्र आधी कर दे। सब्जिया तथा फल बडा दे।

एक दो दिन एक समय केवल रोटी, सब्जी, सलाद ले तथा दुसरे समय केवल फल ले।

एक से तीन दिन फलाहार, फिर एक से तीन दिन रसाहार, पुनः एक से तीन दिन नीम्बू का पानी व शहद पर रहे।

रोगी की शारीरिक, मानसिक अवस्था को देखते हुए दो तीन दिन तक संतरे के रस पर रह कर सीधे उपवास पर आ जाए।

उपवास के दोरान मल सुख जाता है। उपवास के पहले नाशपाती, आवला, करेले के रस से पेट को पूर्ण साफ़ कर लेना चाहिए।

उपवास के दोरान एनिमा, मिटटी पट्टी, मालिश, धुप स्नान, टहलना, आसन, प्राणायाम आदि चिकित्सा रोग के अनुसार ले।

इस दौरान एक घंटे के अन्तराल पर एक गिलास पानी में एक निम्बू निचोड़ कर पीते रहे।

उपवास तोड़ने की विधि

लम्बे उपवास में एक दो दिन कुछ परेशानी अवश्य होती है, फिर कोई कठिनाई नहीं होती। लम्बा उपवास करना जितना सरल है, तोडना उससे ज्यादा कठिन है।

यदि वैज्ञानिक तरीके से उपवास नहीं तोडा जाय तो अनिष्ट होकर म्रत्यु भी हो सकती है। उपवास तोड़ते समय शीघ्र पाचक फलो के रस में पानी मिलकर ले, ताकि पाचन तंत्र भोजन ग्रहण करने की आदत डाल सके।

संतरे के १२५ मि.ली.रस में १०० मि.ली. जल लाकर धीरे धीरे चूसकर पिये। दो तीन घटे के अंतर से जल मिश्रित रस लेते रहे। संतरा उपलब्ध नहीं हो तो एक निम्बू का रस तथा दो चम्मच शहद में एक गिलास पानी मिलाकर पिये अथवा बीस तीस मुनक्का, किशमिश भिगो-मसल-छानकर पानी मिलाकर ले।

दुसरे दिन से रस या सब्जियों के सूप (परवल, लोकी,टिंडा,तोरइ, टमाटर आदि) की मात्रा धीरे धीरे बढ़ाते जाय तथा क्रमशः उबली सब्जी, फल, चपाती की पपड़ी, पतला दलीय ले। संतरा पपीता अंगूर टमाटर, सेब, केला आदि फल उत्तम है।

जितने दिन उपवास करे कम से कम उतने ही दिन सामान्य आहार पर आने में लगना चाहिए। उपवास काल एवं उपवास तोड़ने के समय पर्याप्त मात्र में पानी पीना अत्यंत आवश्यक है। पानी नहीं पीने से विजातीय तत्व बाहर नहीं निकल पाते है एवं तरह तरह के उपद्रव होने लगने है।

लाभ

पेट के समस्त रोग, दमाँ, गठिया चरम रोग, मोटापा आदि जीर्ण रोगों में उपवास एक सर्वोत्तम निसर्गोपचार है।


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