|| जमट्ठं तु न जाणेज्जा, एवमेयंति नो वए ||
जिसके विषय में पूरी जानकारी न हो, उसके विषय में ‘यह ऐसा ही है’ ऐसी बात न कहें जिस विषय में हमें पूरी जानकारी न हो, उस विषय में निश्चय पूर्वक कोई बात नहीं कहनी चाहिये, अन्यथा सुनने वालों को जब अन्य स्त्रोतों से यथार्थ ज्ञान हो जायेगा, तब हमारी स्थिति उपहासास्पद बन जायेगी| लोग हम पर विश्वास ही नहीं करेंगे| एक बार विश्वास उठ जाने पर लोग हमारी सच्ची बात भी नहीं सुनेंगे और सुनी भी तो उसे मानेंगे नहीं| इस प्रकार हमारे बोलने का जो उद्देश्य है, वही नष्ट हो जायेगा| अतः श्रेयस्कर यही होगा कि जिस विषय में हमें संशय हो शंका हो, उस विषय में ‘‘यह ऐसा ही है’’ ऐसी निश्चयात्मक भाषा का प्रयोग न करें; अन्यथा सुनने वाले यदि श्रद्धालु हुए; तो उन्हें मार्गभ्रष्ट करने के अपराधी हम बन जायेंगे| इससे हमारा भी पतन होगा और दूसरों का भी| अन्धे जिस प्रकार अन्धों को मार्ग नहीं दिखा सकते, उसी प्रकार अज्ञानी व्यक्ति भी अज्ञानियों का पथप्रदर्शन नहीं कर सकते | हमें चाहिये कि बोलने से पहले स्वयं समझें – सदा जान कर बोलें |
- दशवैकालिक सूत्र 7/8