गुरु-वन्दन-सूत्र, तिक्खुत्तो का पाठ
तिक्खुत्तो, आयाहिणं, पयाहिणं, करेमि, वंदामि, णमंसामि, सक्कारेमि, सम्माणेमि, कल्लाणं, मंगलं, देवयं, चेइयं, पज्जुवासामि, मत्थएण वंदामि।।
तिक्खुत्तो = तीन बार। आयाहिणं = दाहिनी ओर से। पयाहिणं = प्रदक्षिणा। करेमि = करता हूँ। वंदामि = वन्दना करता हूँ। णमंसामि = नमस्कार करता हूँ। सक्कारेमि = सत्कार करता हूँ। सम्माणेमि = सम्मान करता हूँ। कल्लाणं = आप कल्याण रूप हैं। मंगलं = (आप) मंगल रूप हैं। देवयं = (आप) देव रूप हैं। चेइयं = (आप) ज्ञानवन्त हैं। पज्जुवासामि = (मैं) आपकी उपासना करता हूँ। मत्थएण = मस्तक झुकाकर। वंदामि = वन्दना करता हूँ।
यह गुरुवंदन सूत्र है। संसार के प्राणिमात्र के मन में अज्ञान रूपी अधंकार को दूर करके ज्ञान रूपी प्रकाश को फैलाने वाले गुरू कहलाते हैं। आध्यात्मिक साधना के क्षेत्र में गुरु का पद सबसे ऊँचा है। कोई दूसरा पद इसकी समानता नहीं कर सकता। गुरु हमारी जीवन-नौका के नाविक हैं। संसार के काम, क्रोध एवं लोभ आदि भयंकर दोषों से बचाकर हमको ज्ञान की राह दिखाने वाले, मुक्ति के मार्ग पर ले जाने वाले गुरू ही हैं। ऐसे गुरुदेव की विनयपूर्वक वंदना करना ही इस पाठ का प्रयोजन है।