कायोत्सर्ग शुद्धि-सूत्र
कायोत्सर्ग में आर्त्तध्यान-रौद्रध्यान ध्याया हो, धर्म ध्यान-शुक्ल ध्यान नहीं ध्याया हो तथा कायोत्सर्ग में मन, वचन और काया चलित हुए हों तो तस्स मिच्छा मि दुक्कडं।
कायोत्सर्ग की कोई निश्चित् काल मर्यादा नहीं है। इसकी पूर्ति ‘णमो अरिहंताणं' शब्द बोलकर की जाती है। कायोत्सर्ग काया को स्थिर करके, मौन धारण करके और मन को एकाग्र करके किया जाता है।
कायोत्सर्ग के 1. ऊससिएणं, 2. नीससिएणं, 3. खासिएणं, 4.छीएणं, 5. जंभाइएणं, 6. उड्डुएणं, 7. वायनिसग्गेणं, 8. भमलीए, 9. पित्त मुच्छाए, 10. सुहुमेहिं अंगसंचालेहि, 11. सुहुमेहिं खेलसंचालेहिं और 12. सुहुमेहिं दिट्ठि संचालेहिं, ये 12 आगार हैं।